Book Title: Jain Dharm Vikas Book 03 Ank 08
Author(s): Bhogilal Sankalchand Sheth
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 7
________________ શ્રીભાવકુલકમ सम्भावणा बियासो-वुत्तंतं पुन्वभवगयं सोचा। धम्मी सुव्वयसेट्टी-जह जाओ निम्मलसहावो ॥४७॥ इकारसी तवस्सा-जाइस्सरणेण पुव्वभवविहिया। विण्णाया तेण कया-पुणरवि सा गुरुभणियविहिणा॥४८॥ लद्धं निव्वाणपर्य-इकारसमे भवे समणभावे । सुहभावणाइ एवं-सिरिवालाईण दिटुंता ॥४९॥ केइ सयंभूणामे-जलहिम्मि ससम्मुहडिए मच्छे । पडिमायारे दटुं-मच्छा जाइस्सण जोगा ॥५०॥ पावंति देसविरई-सग्गं गच्छति पालिऊणं तं। अतिहिवयं णो तेसिं-सुहभावो कम्मविवरेहिं ॥५१॥ सिन्झिसु केइ भव्वा-सिझंते सिज्झिहिंति कालतिगे। आराहिऊण मग्ग-मुत्तीए ते सुभावेहिं ॥५२॥ सब्भावजुयं दाणं-पुष्वभवे सालिभद्दपमुहेहिं । दिणं सीलं पालिय-मरिहंतमुणीसराईहिं ॥५३॥ धनाइयभव्वेहि-सम्भावतवो पमोयओ तविओ। पुहुवीचंदाईहि-सुभावणा भाविया सम्मं ॥५४॥ एवं णचा भव्वा !-जिणधम्म कुणह भावणाललियं । तुम्हाण जेण होजा-करयलमज्झडिया मुत्ती ॥५५॥ गयणिहिणदिंदुमिए-विक्कमवरिसीयमाहमासम्मि। सियपंचमीइ रइयं-जइणउरी-रायणयरम्म ॥५६॥ तवगणगयणदिवायर-गुरुवरसिरिणेमिसूरिसीसेणं। पउमेणायरिएण-सहियह भावकुलगमिण ॥७॥ पढणायण्णणजोगा-विष्फुरइ पहावधम्मकरणमई । तस्सुद्धाराहणया-भव्वा साहंति सिद्धिसुहं ॥५॥ ॥समतं भाषकुलगं॥

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