Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 03
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 8
________________ જૈન ધર્મ વિકાસ. सामने मस्तक झुकाने में संकोच करता है वह प्रभु प्रतिमा के सामने तो निस्संकोच सिर झुका ही देता है यह प्रतिमा की ध्यानस्थ सौम्य मुद्रा गुण स्मरणका ही प्रभाव है। साधु समुदाय का तो अन्त सहसा आ भी सकता है किंतु इन मंदिरों और मूर्तियों का सहसा अन्त आजाना कल्पना से पर ही है। साधु समाज का जितना प्रभाव वर्तमान में असर नहीं कर सकता उतना असर इन मूर्तियों का मानव हृदय पर होता है। जब कि विज्ञ समाज भी ईस प्रभाव से वंचित नहीं रह सकता है तो अल्पवजन तो इससे वंचित ही कैसे रह सकते हैं ? मूर्ति ही धर्म मार्ग प्रदर्शिका है । साधु समाज का तो सतत समागम नहीं हो सकता है वास्ते हमेशा उतनी धर्म भावना के जागृत रहने में संदेह भी रहता है किंतु मूर्ति का समागम सतत कर सकते हैं और अपनी धार्मिक प्रवृत्तियों को उत्तेजना भी उनसे मिल सकती है। हमारे सामने वर्तमान में भी ऐसे अनेक प्राचीन तीर्थस्थान विद्यमान हैं जिनके द्वारा हम अपनी पूर्व संस्कृति का और जैनियों की प्रतिष्ठा पूर्ण जाहोजलाली का सम्यकतथा स्मरण कर सकते हैं । जब विरोधियों, विपक्षियों एवं शत्रुओं ने भारत माता पर आक्रमण किया और धर्म की नौका अगाध संमुद्र में डगमगा रही थी उस समय उसकी रक्षा करनेवाली और संस्कृति का स्वरूप ज्ञान कराने वाली ये मूर्तियां ही थीं ओर ये ही दिव्य मंदिर थे। यदि उस समय इन मंदिरों और मूर्तियों का बाहुल्य न होता तो क्या जैन समाज या अन्य कोइ भी समाज इन विपक्षियों का सामना कर सकता था ? - इन मूर्तियों से ही धर्म गौरव रहा है और रहेगा। किसी व्यक्ति विशेष में यह सामर्थ्य नहीं कि सतत इस प्रकार गौरव कायम रख सके । मूर्ति धर्म रक्षा को सिखाती है । मूर्ति की रक्षा ही धर्म रक्षा है और इसका अपमान करना या आशातना करना धर्म का अपमान करने के समान ही है। भारतवर्ष जो कि धर्मप्रधान देश माना जाता है उसके धर्म की रक्षा भी इन मूर्तियों से ही हुई हैं। प्राचीन काल से ही आर्य एवं अनार्य सभी लोक भक्तिभाव पूर्वक अपने इष्टदेव की मूर्ति की पूजा प्रतिष्ठा करते थे जिससे आज तक उनमें वे ही संस्कार परंपरागत चले आ रहे हैं । प्राचीनकालमें तो मूर्तिपूजा का प्रचार इतनी प्रचुरता से था कि वे लोग देवी देवताओं और प्रतिमाओं के अतिरिक्त वृक्षादि की पूजा करते थे । भारतीय ख्यात विख्यात धर्मोंमें जैनधर्म, वेदान्त धर्म और बौद्ध धर्म ही प्राचीन माने जाते हैं। इन तीनों धर्म के नायको ने अपने धार्मिक विधि विधानों में मूर्ति और उसकी पूजा भी ऊंचा स्थान दिया है। वेदान्त धर्म और बौद्ध धर्म के शास्त्रों में तो मूर्ति पूजा और प्राचीन संस्कृति विषयक प्रमाण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। आज भी इनके अनुयायी विषय संख्या में संसार व्याप्त है । वैदिक धर्मशास्त्र की नींव तो मूर्तिपूजा पर ही अवलंबित है । उसका मुख्य पाया मूर्तिपूजा ही है । (अपूर्ण)

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