Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 03
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 14
________________ न धर्म विस. तो अपनी संतति का भार्ग-रोधक कंटक बनकर सदैव के लिए उसे हर प्रकार से दुःखी बना रहा है। इससे प्रथम तो समाज में अशिक्षा का प्रचार बढ़ता है, द्वितीय बात यह है कि वह बालक और उसकी सन्तति निर्बल होती हुई चली जाती है, बलहीनता के साथ में अन्य कमजोरियें तो आ ही जाती हैं, और इस प्रकार समाज का प्रत्येक प्रकार से हास होता चला जाता है। वाल-विवाह के कारण कितने ही होनहार बालक अकाल में ही मृत्युग्रास बनकर सदैव के लिए कितनी ही अबोध बालिकाओं के सौभाग्य सूचक भाल-सिन्दूर को पौंछकर इस अनन्त ज्वालामय संसार में उन्हें घोर करुणापूर्ण रुदन करती हुई छोड़कर चल बसे हैं। पौत्र पौत्री को शीघ्र देखने की दुष्ट इच्छाने कितने ही गृहों में दुःख की जाज्वल्यमान ज्वालाओं को उत्पन्न की है। इस इच्छा के द्वारा कितने दिव्य प्रासाद पिशाचों के श्मशान बन गये हैं। ___ आज समाज में कई विधवाएं अपने अवशेष जीवन के दुःखमय दिन किस प्रकार व्यतीत कर रही हैं ? और उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा यदि यही अवस्था रही तो समाज की क्या दशा होगी यह प्रत्येक सहृदय पाठक विचार सकता है। ___ वर्तमान वैवाहिक-चिनगारी में अनमेल विवाह और कन्या विक्रय का भी कम भाग नहीं है। समाज इनका भी शिकार होकर अत्यधिक हानि उठा रही हैं। पति अथवा पत्नि दोनों में से किसी भी एक की आयु में अत्यधिक अन्तर होने पर समाज में अव्यवस्था और पाप की और भी अकिक अभिवृद्धि होती है। । कन्याविक्रय का कितना दुष्ट परिणाम होता है कि धनवान वृद्ध तो तीन २ चार २ विवाह कर लेते हैं और धनहीन कितने ही योग्य सुशिक्षित तरुणं आजन्म, अविवाहित ही रह जाते हैं, अंत में वे अपनी उद्दाम यौवनावस्थामें पाप-मार्ग की और डग भरते ही हैं । और उधर वे वृद्ध-पति से असंतुष्टा, मन्मथ-पीडिता, ललित यौवन संपन्ना नववधुएं भी अन्यासक्ता हो ही जाती हैं । इस प्रकार समाज का नैतिक और धार्मिक पतन हो जाता है । तथा बालिकाओं का समान आयु वालों से विवाह नहीं होने के कारण और उधर तरुणों के अविवाहित रह जाने के कारण क्या जन-संख्या की भी कमी नहीं होती है ? इस प्रकार वर्तमान की अयोग्य विवाह पद्धति से समाज धन, जन, बल, प्रतिष्ठा, धर्म आदि से हीन होता चला जाता है, दुख अशांति की और डग भरता चला जाता है। और इन्हीं दुर्गुणों के कारण समाज के मनुष्यों के इस जन्म के साथ साथ भविष्य के गर्भ में अवस्थित आगामी जन्म भी दुखमय ही हो रहे हैं।

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