Book Title: Jain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 04 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri USUEUENSUSUBTEVELES annanETREMENDETE आत्मशक्ति अपनी शक्ति को समझ लें, तो मिटे सय पास है। अपनी शक्ति को समझ ले, विश्व अपना दास है ॥१॥ शारम से परम-आत्म होना, येही जग में खास है। येही लगी अपने जीवन में, एक दिवस आश है ॥ २ ॥ आत्म से परम-आत्म होना, नहीं सुगम कुछ पात है। पुरुषार्थ दृढ़ करना पडे, इसके लिये दिनगत है ॥ ३ ॥ रज लगी जो कर्म की, उसको हटाना यास है। संयम व तप स्वीकृत करें, तव कर्म का वह नाश है ।। ४ ॥ होगा जहांतक वह नहीं, संयम व तप का प्रयास है। वहां तक समझना आतमा, होता रहेगा निराश है ॥ ९ ॥ विश्व में सर्व श्रेष्ठतम, नर जन्म ही एक ग्यास है। भोग में इसको विताना, तो मोल लेना प्राम है ॥६॥ भोग में रहता सदा, अशान्ति का साम्राज्य है। त्याग में रहना सदा, वह शान्ति का ही निवास है ॥ ७ ॥ भोग में गमता न कर, गहना सदा ही उदास है। . त्याग का ही ध्येय रखना, येही अनुभव गमास है ॥ ८॥ त्याग से निज शक्ति का, होता रहेगा विकास है। मिटता रहेगा इस शक्ति से, वह विश्व का सब त्रास हैं ॥ २ ॥ धन व वैभव संपदा, नहीं आतमा की ग्नास है। है आतमा की ज्ञानशक्ति, जो राज की सरताज है ॥ १० ॥ . राजमल भण्डारी-आगर (मालना ) yari FE U 12 veus VC VE VE CSSETTES For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30