Book Title: Jain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 555
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 549 वि.सं. 2055 Robert S. Understanding Tata Mc Graw Hill Feldman Psychology Publishing Company Limited, New-Delhi | वदिदेवसूरि प्रमाणनयतत्त्वालोक जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, 1972 पाथर्डी, अहमदाबाद | मुनि विनयसागर | गौतमरास : परिशीलन प्राकृत भारती अकादमी, 1987 जयपुर 48 | साध्वी डॉ. विनीतप्रज्ञा | उत्तराध्ययन दार्शनिक श्री चन्द्रप्रभु महाराज जुन 2002 अनुशीलन एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य | जैन मंदिर ट्रस्ट, 345 मिन्ट में उसका महत्व स्ट्रीट 49 | वामन शिवराम आप्टे | संस्कृत-हिन्दी कोश मोतीलाल बनारसीलाल वाराणसी 50 हरिभद्रसूरि श्री ललित विस्तरा दिव्यदर्शन ट्रस्ट द्वारा कुमारपाल विशाह, 36 कलिकुण्ड सोसायटी, धोलका, (गुजरात) 51 आ. हेमचन्द्राचार्य योगशास्त्र निर्ग्रन्थ साहित्य प्रकाशन 1975 संघ, दिल्ली-6 52 | आ. हेमचन्द्राचार्य | त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर 53 | आ. श्री हेमरत्नसूरि | रीसर्च ऑफ डाईनींग टेबल अर्हद् धर्म प्रभावक ट्रस्ट सं.. प्रार्थनापीठ, 17, इलोरा पार्क | 2063 सोसायटी, जैन देरासर के पास, नारणपुरा, चार रस्ता, अहमदाबाद 54 | सा. डॉ. हेमप्रज्ञाजी | कषाय : एक तुलनात्मक श्री विचक्षण प्रकाशन, इन्दौर | 1999 अध्ययन 55 डॉ. सागरमल जैन | जैन, बौद्ध और गीता के आचार | राजस्थान प्राकृत भारतीय | 1982 दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन | संस्थान, जयपुर (भाग 1-2) 56 | डॉ. सागरमल जैन धर्म का मर्म | प्राच्यविद्यापीठ, दुपाड़ा रोड, | 2010 शाजापुर, म.प्र. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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