Book Title: Jain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Author(s): Pramuditashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 560
________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व उचित या अनुचित का भेद कर सकता है। ज्ञान न्यूनाधिक रूप में एकेन्द्रिय जीवों से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में होता है, फिर भी संज्ञी प्राणियों में विवेकशक्ति स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है । 554 प्राणी-जगत् में आसक्ति या आकांक्षा का मूल कारण परिग्रह - संज्ञा है परिग्रह - संज्ञा के कारण ही जीव सुख - दुःख की प्राप्ति करता है। सुख की प्राप्ति के लिए ही प्राणी पूरा संसार रचाता - बसाता है। चींटी रहने के लिए मिट्टी का टीला बनाती है, तो चूहे, साँप, छछून्दर आदि बिल बनाते हैं, पक्षी घोंसला बनाते हैं, तो जंगली पशु गुफाओं और कंदराओं में अपने रहने के लिए जगह खोजते हैं और मनुष्य अपने लिए मकान का निर्माण करते हैंऐसा क्यों ? क्योंकि प्राणीमात्र की यह इच्छा होती है कि वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सुखपूर्वक रहे। वे घर इसलिए भी बनाते हैं कि शीत, उष्ण एवं वर्षाकाल में वे सुरक्षित रह सकें, या फिर कोई बलवान् प्राणी उन पर हमला करे, तो वे अपने को सुरक्षित रख सकें। इस भय के कारण भी वे अपने लिए अनुकूल जगह की खोज करते हैं। आहार आदि चार संज्ञाएं बाह्य - रूप से दृश्य हैं, पर मानसिक - संज्ञाएं तो मन में जमी रहती हैं व जीवन-शैली को सतत दिशा देती रहती हैं। क्रोधादि कषायों एवं नोकषायों से सम्बन्धित जो मानसिक - संज्ञाएं हैं, वे कर्मों के बंध का मूल कारण हैं। प्राणी विषय - कषायों में पड़कर भवभ्रमण को बढ़ाता है एवं लक्ष्य से भटक जाता है। यहाँ तक कि जब जीव काम, वासना, क्रोध, लोभ आदि संज्ञाओं के वशीभूत हो जाता है, तो वह पशुतुल्य व्यवहार करता है। उसे हित-अहित का भान ही नहीं रहता । इस आधार पर हम कह सकते हैं कि प्राणी - व्यवहार की प्रेरक होने से संज्ञाओं का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। प्राणी - व्यवहार गतिशील होता है। पाश्चात्य - मनोविज्ञान में इस प्राणीय- व्यवहार को गति देने वाले प्रेरक तत्त्वों को मूलप्रवृत्तियों {Instincts}, संवेगों {Emotions } एवं स्थाई- भावों (Sentiments } के रूप में जाना जाता है । पाश्चात्य - मनोविज्ञान के प्राणीय - व्यवहार के इन प्रेरक-तत्त्वों को जैनदर्शन में 'संज्ञा' के नाम से जाना जाता है। आधुनिक मनोविज्ञान में ये प्रवृत्तियाँ जन्मजात मानी गई हैं। जैनदर्शन इनमें से आहार, भय, मैथुन, परिग्रह आदि कुछ प्रवृत्तियों को जन्मजात मानता है, तो धर्म आदि कुछ प्रवृत्तियों को अर्जित भी मानता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580