________________
जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
तथा स्कन्धनामीय परमाणु समवाय की अपेक्षा से पुद्गल के दो भेद - परमाणु स्कन्ध होते हैं। इसको संक्षिप्त भेद कहा गया है। 28 समवाय रूप में पुद्गल स्कन्ध है तथा भिन्न-भिन्न रूप में परमाणु हैं।
156
पुद्गल द्रव्य के “ परमाणु और स्कन्ध" भेद के अतिरिक्त अन्य भेद भी होते हैं, 29 जैसे.
(क) सूक्ष्म सूक्ष्म (ख) सूक्ष्म (ग) सूक्ष्म स्थूल (घ) स्थूल सूक्ष्म (ङ) स्थूल (च) स्थूल स्थूल |
गोम्मटसार में पुद्गल के उपर्युक्त छः भेदों के नाम इस प्रकार प्रतिपादित
30
(क) सूक्ष्म सूक्ष्म (ख) सूक्ष्म (ग) सूक्ष्म बादर (घ) बादर सूक्ष्म (ङ) बादर (च) बादर बादर
(क) सूक्ष्म सूक्ष्म इनमें से एक अर्थात् स्कन्ध से पृथक् रहने वाला परमाणु सूक्ष्म सूक्ष्म हैं क्योंकि वह न देखा जा सकता है, न स्पर्श किया जा सकता है। 31
सूक्ष्मात सूक्ष्म-परमाणु को सूक्ष्म सूक्ष्म कहा जाता है क्योंकि यह अन्त्य सूक्ष्म है - इससे सूक्ष्म और कोई पुद्गल नहीं है। इसको प्रत्यक्ष से परम अवधि ज्ञान तथा केवलज्ञानी ही जान सकते हैं। अन्य जीव कार्यलिंग की अपेक्षा अनुमान से जान सकते हैं। 32
(ख) सूक्ष्म कर्मों के स्कन्ध सूक्ष्म कहलाते हैं क्योंकि वे अनन्त प्रदेशों के समुदाय रूप होते हैं। 33
उन सूक्ष्म पुद्गल स्कन्धों को जो अतीन्द्रिय हैं
सूक्ष्म कहते हैं। 34
(ग) सूक्ष्मस्थूल शब्द, स्पर्श, रस और गन्ध सूक्ष्मस्थूल कहलाते हैं क्योंकि इनका चक्षु इन्द्रियों के द्वारा ज्ञान नहीं होता। इसलिए ये सूक्ष्म हैं परन्तु अपनी-अपनी कर्ण आदि इन्द्रियों के द्वारा इनका ग्रहण हो जाता है इसलिए स्थूल भी कहलाते हैं। 35
नेत्र को छोड़कर चार इन्द्रियों के विषयभूत पुद्गल स्कन्ध को सूक्ष्मस्थूल कहते हैं। 36
(घ) स्थूल सूक्ष्म छाया, चाँदनी और आयत आदि स्थूल सूक्ष्म कहलाते हैं क्योंकि चक्षु इन्द्रिय के द्वारा दिखायी देने के कारण ये स्थूल हैं