Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan
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आ.पु. 10.159-181
557. सद्दर्शनं व्रतोद्योतं समतां प्रोषधव्रतम्।
सचितसेवाविरतिमहःस्त्रीसंगवर्जनम्।। ब्रह्मचर्यमथारम्भपरिग्रहपरिच्युतिम्। तत्रानुमननत्यागं स्वोद्दिष्टपरिवर्जनम्।। स्थानानि गृहिणां प्राहुरेका दशगणाधिपाः।
स तेषु पश्चिमं स्थानमाससाद क्रमान्नृपः।। 558. उपा.सू. 1.67 (टी.) 559. जै.सि.को. भा. 2, पृ. 416 560. च.सा. पृ. 5 561. सु.र.सं. श्लोक सं. 14 562. रत्न श्रा. श्लोक सं. 138 563. वसु.श्रा.गा. 276-278; दशा.सू., 6 दशा 564. रत्न.श्रा. श्लोक 140; उपा.सू. 1.68 टी. 565. सर्वा. सि. 7.35.371.6 566. द.सं. 45.195.5 567. रत्न.श्री. 7.8 श्लोक 143 568. वसु. श्री. • गा. 297; द्र.सं. 45.8 (टीका) 569. उपा.सू. 1.68 टी. 570. रत्न.श्रा. श्लोक-144 571. वसु. श्रा. गा.-298 572. रत्न.श्रा. श्लोक-145 573. वसु.श्रा.गा. 299 574. रत्न.श्रा. श्लोक 146; दशा.सू. 6 575. प.पु. 4.91.97 576. अमित. श्रा.; अधि. 7.77.

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