Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

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Page 365
________________ 324 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण सत्य यह है कि वस्तु का कितना भी वर्णन किया जाये, किन्तु वह रहेगा आंशिक ही, पूर्ण वर्णन नहीं किया जा सकता। जैसे - स्यादवक्तव्य घटः।। 40 (ङ) स्यादस्ति अवक्तव्य वस्तु है किन्तु अवक्तव्य है। जैसे - स्यादस्ति अवक्तव्य घट:।।4। (च) स्यादन्नास्ति अवक्तव्य वस्तु नहीं है किन्तु अवक्तव्य भी है जैसे - "स्यादन्नास्ति अवक्तव्य घट:।142 (छ) स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्य वस्तु है भी, नहीं भी है और अवक्तव्य है। जैसे - स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्य घट:।143 किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय इन सात भंगों में से किसी न किसी एक भंग का उपयोग करना पड़ता है। प्रस्तुत विषय को सुगमतापूर्वक समझने के लिए यहाँ पर एक स्थूल और व्यावहारिक उदाहरण देते हैं। किसी मरणासन रोगी के बारे में पूछा जाये कि उसकी हालत कैसी है? तो उसके जवाब में वैद्य अधोलिखित सात उत्तरों में से एक उत्तर देगा -- 1. अच्छी हालत है (अस्ति) 2. अच्छी हालत नहीं है (नास्ति) 3. कल से तो अच्छी है (अस्ति), परन्तु इतनी अच्छी नहीं है कि __आशा रखी जा सके (नास्ति) (अस्ति, नास्ति) 4. अच्छी या बुरी कुछ नहीं कहा जा सकता (अवक्तव्य) 5. कल से तो अच्छी है (अस्ति), फिर भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या होगा (अवक्तव्य) (अस्ति अवक्तव्य) 6. कल से तो अच्छी नहीं है (नास्ति), फिर भी कहा नहीं जा सकता कि क्या होगा? (अवक्तव्य) (नास्ति अवक्तव्य) 7. वैसे तो अच्छी नहीं है (नास्ति, परन्तु कल की अपेक्षा तो अच्छी है (अस्ति) तो भी कहा नहीं जा सकता कि क्या होगा? (अवक्तव्य) (अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य)।।44

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