Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ 340 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण चमक उठते हैं, प्रगट हो जाते हैं। उसी प्रकार, जैसे काले कजराले मेघ पटलों से छिन्न-भिन्न होते ही सहस्ररश्मि सूर्य अपनी स्वाभाविक प्रभा से चमक उठता है। सिद्धशिला लोक का अन्तिम भाग, वह बिन्दु जहाँ से अलोकाकाश का प्रारम्भ होता है। लोकाकाश अलोकाकश के मध्य नितान्त पवित्र स्थान है यही इन सिद्धों की निवास भूमि है। इस स्थान को सिद्धशिला कहते हैं। आत्मा स्वभावतः ऊर्ध्वगति से गमन करता हुआ बिना मोड़ लिए, सरल-सीधी रेखा में गमन करता हुआ अपने देह त्याग के स्थान से एक समय मात्र में सिद्धशिला से भी ऊपर पहुँच कर अवस्थित सदा-सदा के लिये हो जाता है, आत्मा की वह सर्वकर्म विमुक्त दशा सिद्ध दशा अथवा सिद्धगति कहलाती है। 35 वह सिद्धशिला चौदह राजू विस्तार वाले पुरुषाकार लोक के अग्रभाव में सर्वार्थसिद्ध विमान से बारह योजन ऊपर 45 लाख योजन लम्बी चौड़ी गोलाकार मध्य में 8 योजन मोटी है और घटते घटते दोनों किनारों से मक्खी के पँख के समान पतली हो गई है। अतीव पतली, एक करोड़ बयासी लाख तीस हजार दो सौ उन्चास योजन के घेरे वाली 36 वह सिद्धशिला श्वेत वर्णी, स्वभाव से निर्मल और उत्तान (उल्टे ) छाते के आकार की है। सिद्धशिला के एक योजन ऊपर, लोक के अग्रभाग में 45 लाख योजन लम्बे-चौड़े और 333 धनुष 32 अगुल ऊँचे क्षेत्र में अनन्त सिद्ध भगवान विराजमान हैं। अथवा इस एक योजन का जो ऊपरी कोस है, उसके छठे भाग में सिद्ध भगवान अवस्थित है। 37 समीक्षा मोक्ष अर्थात् सभी कर्मों का सर्वथा क्षय । समग्र आत्यन्तिक कर्मों का क्षय होने पर ऊर्ध्वगमन करना यह आत्मा का स्वभाव है। यह बात तुम्बे का दृष्टान्त देकर कही गई है। ऊर्ध्वगमन करता हुआ आत्मा लोक के अग्रभाग में पहुँच कर रुक जाता है और वही स्थिर हो जाता है, वहाँ से वह आगे गमन नहीं कर सकता, क्योंकि लोक के अग्रभाग से आगे गति करने में सहायभूत "धर्मास्तिकाय' पदार्थ वहाँ पर नहीं है और आत्मा में गुरुत्व तथा कोई कर्मजन्य प्रेरणा के न होने से वहाँ से वापिस नीचे अथवा तिरछा तो वह जा ही नहीं सकता। "" मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य गति द्वारा ही होती है। देवगति में से मुक्ति का परमधाम प्राप्त नहीं कर सकतें। जो मोक्ष के योग्य होता है वह भव्य जीव कहलाता है। अभव्य दशा वाला मोक्ष के योग्य नहीं होता ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394