Book Title: Jain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Author(s): Supriya Sadhvi
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan

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Page 333
________________ 292 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण - -- आ.पु. 21.188-189 - आ.पु. 21.194-195 त.सू. (के.मु.) 9.41.46 वि. ___ - आ.पु. 21.196 स हि योगनिरोधार्थमुद्यतः केवली जिनः। समुद्घातविधि पूर्वमावि:कुर्यान्निसर्गतः।। 347. आ.पु. 21.190-193. 348. ता.सू. (के.मु.) 10.3 वि. 349. पुनरन्तर्मुहूर्तेन निरुन्धन् योगमास्रवम्। कृत्वा वाङ्मनसे सूक्ष्मे काययोगव्यपाश्रयात्।। सूक्ष्मीकृत्य पुनः काययोगं च तदुपाश्रयम्। ध्यायेत् सूक्ष्मक्रियं ध्यानं प्रतिपातपराङ्मुखम्।। 350. ततो निरुद्धयोगः सन्नयोगी विगतास्रवः। समुच्छिन्नक्रियं ध्यानमनिवर्ति तदा भजेत्।। 351. त.सू. 9.41-46 वि. आ.पु. 21--197 352. आ.पु. 21.57-59 353. आ.पु. 21.60-64 354. आ.पु. 21.65-66 355. आ.पु. 21.69-74 356. आ.पु. 21.75-87 357. आ.पु. 21.231-232 358. आ.पु. 21.233 359. वही, 21.234 360. वही, 21.235-236 361. जै.सि.को. (भा.-1) पृ. 475 362. आ.पु. 1.121; 2.9 363. जै.सि.को. (भा.1), पृ. 478 364. जै.सि.को. (भा.1), पृ. 478 365. कोष्ठबुद्धे नमस्तुभ्यं नमस्ते बीजबुद्धये। पदानुसारिन् संभिन्नश्रोतस्तुभ्यं नमो नमः।। 366. वही 367. जै.सि.को. (भा.1), पृ. 479 368. आ.पु. 2.67 (टीका) 369. वही। 369A. आ.पु. 2.67 (टीका) 370. ति.प. 4.984986 - आ.पु. 2.67; टीका 11.80

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