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आदिपुराण में अजीव तत्त्व विमर्श
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(क) स्कन्ध - स्कन्ध का अर्थ - अखण्ड द्रव्य। धर्म, अधर्म और आकाश इन तीन अस्तिकायों में स्कन्ध घटित होता है। स्निग्ध, रूक्ष अणुओं का जो समुदाय है उसे स्कन्ध कहते हैं।
(ख) परमाणु - पुद्गल द्रव्य का विस्तार दो परमाणुओं वाले व्यणुक स्कन्ध से लेकर अनन्तानन्त परमाणु वाले महास्कन्ध तक होता है। छाया, आतप, अन्धकार, चाँदनी, मेघ आदि सब उसके भेद-प्रभेद हैं। परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। वे इन्द्रियों से नहीं जाने जाते। घट-घटादि परमाणुओं के कार्य हैं, उन्हीं से अनुमान किया जाता है। उनमें कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श रहते हैं, एक वर्ण, एक गन्ध और एक रस रहता है। वे परमाणु गोल और नित्य होते हैं तथा पर्यायों की अपेक्षा अनित्य भी होते हैं।26
स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु के आधार पर पुद्गल के चार भेद भी निरूपित हैं -
स्कन्ध - दो प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशी, स्कन्ध तक जितने भी स्कन्ध हैं वे सब स्कन्ध कहलाते हैं।
देश - स्कन्ध का एक कल्पित भाग अर्थात् प्रत्येक स्कन्ध के बुद्धि द्वारा किए हुए कल्पित भाग को देश कहते हैं।
प्रदेश - जिस अंश का बुद्धि द्वारा भी विभाग न हो सके, वह प्रदेश है।
परमाणु - वही प्रदेश जब स्कन्ध से अलग हो जाता है तब उसी को परमाणु कहा जाता है।
जीव औदारिक आदि पुद्गलों को ग्रहण करते हैं। मन, वाणी, काया, श्वासोच्छ्वास तथा अष्टविध कर्म और इन्द्रियाँ ये सब पुद्गल हैं। सभी संसारी जीव पुद्गलों को योग और कषायों से ग्रहण करते हैं, क्योंकि संसारी जीव पुद्गली हैं और पुद्गली ही पुद्गल को ग्रहण करते हैं। परमात्मा (सिद्ध भगवान्) पुद्गली नहीं है, अतः वे पुद्गलों को ग्रहण भी नहीं करते।268
व्यक्तिगत भाव से सर्व पुद्गल परमाणु हैं। किसी दूसरे पुद्गल के साथ अबद्ध अवस्था में पुद्गल परमाणु रूप हैं। अत: परमाणु के स्वरूप की अपेक्षा से पुद्गल का एक ही भेद "परमाणु" होता है। पुद्गल का एकान्त भेद केवल एक परमाणु हैं। निश्चयनय से सर्व पुद्गल परमाणु है।
परमाणु-परमाणु परस्पर में बन्धन को प्राप्त होकर जिस समवाय या समुदाय को प्राप्त होते हैं, उसे स्कन्ध कहते हैं। उपर्युक्त व्यक्तिगत परमाणु