Book Title: Jain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 11
________________ भूमिका रहस्यवादके अनुसन्धित्सुओंको नयी दिशा मिलेगी। .. आचार्य समन्तभद्रने अपनी ताकिक प्रतिभाके बलपर अनेक प्रवादियोंको निरस्त कर दिया था। उन्हें भारतीय दर्शनोंका मूक्ष्म ज्ञान था। वे पण्डित थे, वाग्मी थे, नैय्यायिक थे, दार्शनिक थे। उन्होंने 'स्वयम्भूस्तोत्र' और 'स्तुतिविद्या का निर्माण किया। दोनोंमें भक्तिरस है-वैसा ही चरम आनन्द । भारतके भक्ति-साहित्यको वह एक अनूठी देन है । समन्तभद्र अलौकिक प्रतिमा और सरस हृदयके धनी थे । ऐसा व्यक्तित्व फिर केवल शंकराचार्यको ही मिला। उनमें भी प्रतिभा और हृदयका समन्वय था। कुमारिलभट्ट और मंडनमिश्रका विजेता लोह पुरुष नहीं था । 'भज गोविन्दं स्तोत्र उनके द्रवणशोल हृदयका प्रतीक है। · भट्ट अकलंक एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे। उन्होंने राजवातिकका निर्माण किया । दर्शनके क्षेत्रमें इस ग्रन्थकी ख्याति है। दूसरी ओर उन्होंने अकलंक-स्तोत्रकी रचना की। उसका सम्बन्ध विशुद्ध भक्तिसे है। आचार्य सिद्धसेन नैयायिक थे, किन्तु कल्याणमन्दिरस्तोत्र उनके सरस हृदयका प्रतीक है। सिद्धहेमव्याकरणके रचयिता आचार्य हेमचन्द्रकी विद्वत्ता और राजनीति, दोनों ही क्षेत्रोंमें समान गति थी। गुजरातके महाराजा सिद्धराज उनके अनुयायी थे। गुजरातको राजनीतिपर आचार्य हेमचन्द्र अनेक वर्षों तक छाये रहे । विद्वत्ता तो जैसे उनकी जन्मजात सम्पत्ति थी । वे व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, सिद्धान्तके अप्रतिहत विद्वान् थे। उन्हें भी हृदय भक्तका मिला था। अहंन्त-स्तोत्र, महावीर-स्तोत्र और महादेव स्तोत्र इसके प्रमाण हैं। उनमें रस है, आनन्द है और हृदयको आराध्यमें तल्लीन करनेकी सहज प्रवृत्ति । पात्रकेशरीकी विद्वत्ताके क्षेत्रमें ख्याति थी। उन्होंने एक ओर 'त्रिलक्षणकदर्थन' लिखा, तो दूसरी ओर 'पात्र केशरी-स्तोत्र' की रचना की। आचार्य मानतुंगके भक्तामर-स्तोत्रकी तो संसारके विद्वानोंने प्रशंसा की है। वह एक भक्तहृदयका सरस निदर्शन है। सारांश यह कि शायद ही कोई ऐसा जैन आचार्य हो, जिसने सैद्धान्तिक विद्वत्ताके साथ-साथ भक्तिपरक काव्योंकी रचना न की हो। संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंशमें शतशः स्तुति-स्तोत्र रचे गये। उनमें जैन भक्तोंका अच्छा योगदान है। विपुल परिमाणमें जो स्तुति-स्तवन रचे गये, उन सबका प्रामाणिक संकलन तभी सम्भव है, जब सभी जैन भण्डारोंको टटोल लिया जाये। संस्कृत और प्राकृतमें लिखे गये अनेक स्तुति-स्तोत्र मिल चुके हैं, उनमें से कुछका प्रकाशन भी हुआ है। अपभ्रंश-स्तोत्रोंके लिए पाटण-भण्डारका सुपरीक्षण

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