Book Title: Jain Agam Sahitya
Author(s): K R Chandra
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 10
________________ .. ने माउंट आबू के देख्वाडा के शिल्पस्थापत्य से प्रभावित होकर उन्हें शासकीय पुरातत्व विभाग के द्वारा अधिगृहीत करने का प्रस्ताव रखा, तब सेठ लालभाईने सेठ आनंदजी कल्याणजीकी पेटी के अध्यक्ष की हैसियत से उनका विरोध किया और आठ-दस वर्षों तक अनेक कारीगरों को काम में लगाकर यह सिद्ध कर दिया कि पेढी की तरफ से मन्दिरों के संरक्षण में कितनी सुव्यवस्था है। अनेक विद्यालयों, पुस्तकालयों एवं संस्थाओं के निर्माता के रूप में उनकी उदारता की सुवास सम्पूर्ण गुजरात में फैली हुई है। उन्होंने १९०८ में सम्मेतशिखर पर व्यक्तिगत बंगला बनाने के शासकीय आदेश को निरस्त करवाया था। वे जैन श्वेताम्बर कॉन्फरेन्स के महामन्त्री भी थे। ब्रिटिश शासनने उनकी सेवाओं की सराहना की थी और उन्हें सरदार का खिताब प्रदान किया था । सेठ लालभाई के सात . स ताने थीं, तीन पुत्र और चार पुत्रियाँ । श्री कस्तूरभाई उनकी चौथी संतान थी । पिला के अनुशासन और माता के वात्सल्य के बीच इन सातों संतानों का लालन-पालन हुआ। श्री कस्तूरभाईने प्राथमिक शिक्षा नगरपालिका द्वारा संचालित एक शाला में प्राप्त की और वे १९११ में आर.सी. हाईस्कूल से मेट्रिक्युलेशन की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। जिस समय वे चौथी कक्षा में थे उस समय चल रहे स्वदेशी आन्दोलन का उनके चित्त पर गहरा प्रभाव पड़ा । मेट्रिक के पश्चात् उन्होंने गुजरात कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया किन्तु कॉलेज-जीवन के प्रथम छः महीने में ही सन् १९१२ में पिताजी का देहान्त हो जाने से मिल की व्यवस्था में अपने भाई की सहायता करने के लिए उन्हें अपना अध्ययन छोड़ देना पड़ा । उन्होंने अपने चाचा के मार्ग दर्शन में अपने हिस्से में आयी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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