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जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ
- Acharya Roopchandraji
सुना है मैंने आयुष्मन्, उन भगवान ने ऐसा कहा है- जे एगं जाणइ से सव्वं जाणई, जे सव्वं जाणई से एगं जाणइ-जो एक को जानता है वह सबको जानता है और जो सबको जानता है वह एक को जानता 1 क्या है यह संसार ?
बाहर के संसार को जानने की कोशिश हजारों वर्षों से होती रही है। मिट्टी के कण से पर्वत तक, जल-बिन्दु से सागर तक, पृथ्वी से सौरमण्डल, उससे आगे तारामण्डल, उससे भी आगे आकाशगंगाओं और नीहारिकाओं तक के विषय में मानव ने जिज्ञासाएं की हैं और समाधान पाने का प्रयास भी किया है। भौतिकशास्त्र इस विराट् विस्तार की परिक्रमा कर अन्ततः परमाणु तक पहुंचा, परमाणु के भीतर की 'तरंगों तक पहुंचा और तरंगों के पार, घटनाओं तक भी गया। घटनाओं के आगे वह है जो घटित नहीं होता है, उसे आज विज्ञान क्षेत्र - 'फील्ड' कहता है। यह असीम क्षेत्र जिसमें घटनाएं हो रही हैं, कार्य-कारण के अटल नियमों से बंधा, भौतिकशास्त्र का अन्तिम सत्य है-अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार इन घटनाओं का एक क्रम है, इस क्रम में कुछ सूत्र हैं जिन्हें गणितीय प्रतीकों में व्यक्त किया जा सकता है । घटनाएं हो रहीं हैं जिसमें और जो घटित हो रहा है उसमें कोई भेद दिखाई नहीं पड़ता । जो अघटित है स्वयं वही पृष्ठभूमि हो सकता है घटनाओं की, लेकिर घटनाएं तभी हो सकती हैं जब कुछ घटित होने वाला हो। अतः जो अघटित है और जो घटित हो रहा है और जो घटनाएं हैं- इनके मध्य विभाजक रेखाएं खींचना असम्भव हो गया है। बालू के कण से नीहारिका तक का विस्तार सिमट गया है उस 'एक' में जिसे जानना ही 'सब' को जानना है। लेकिन भौतिकशास्त्र का यहां अन्त हो जाता है क्योंकि वह जानने का आदी रहा है गुणों- 'क्वालिटीज' को और उन्हें आवश्यक मानता है पदार्थ सब्सटेन्स के जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ
Jainism: The Global Impact 151