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मौन हो गया। परमाणु टूट नहीं सकता, अतः इससे आगे जानने को कुछ नहीं बचा है, यह मान लिया था उसने। आइन्स्टाइन ने परमाणु को तोड़कर नाभिक का चित्र दिया-धनाणुओं के चारों ओर घूमते ऋणाणुओं का एक लघु परिमण्डल-मिनियेचर सोलर सिस्टम। उससे आगे रास्ता नहीं है, उसने कहा। उससे भी आगे रास्ते खुले, कण-'पार्टीकल'–से तरंग-'वेव'; उससे आगे प्रमात्रा-'क्वाण्टम', उससे भी आगे घटनाएं-इवेण्ट्स-हैं। अब कहा जाता है कि यह सारा लोक सूक्ष्मतम से विराटतम तक परस्पर-सम्बद्ध क्रिया-व्यापार का क्षेत्र-फील्ड ऑफ रिलेटेड फंक्शन्स है। क्रिया-व्यापार भी तो फॉर्स हैं। उनका भी तो अतिक्रमण होने वाला है। फील्ड भी तो एक 'कॉन्सेप्ट' है, प्रकल्पना है। हर 'कॉन्सेप्ट' एक फॉर्म होता है-हर प्रकल्पना भी तो एक मानसिक आकार होती है। वह क्या है जिसके ये सब हैं लेकिन जो ये सब नहीं हैं। महावीर कहते हैं, उसी को जानना जरूरी है। उस एक को जान लिया, सब कुछ अपने आप जान लिया जाएगा। जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ-जो एक को जानता है वह सबको जानता है; जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ-जो सबको जानता है वह एक को जानता है। हम पिण्ड को जान लें, ब्रह्मांड स्वयं ज्ञात हो जाएगा, ब्रह्मांड को जान लें, पिण्ड स्वयं ज्ञात हो जाएगा। भेद पदार्थ में है, ज्ञान में नहीं।
Jainism: The Global Impact
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