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ग्रहण करता रहता है। द्रव्य की परिभाषा करते हैं-वह जिसमें गुण और पर्याय होते हैं। बात बड़ी सीधी है, लेकिन सारी जटिलताओं से गुज़रकर पायी गयी है, गुज़रकर ही पायी जा सकती है। मैटर वह है जिसका 'फॉर्म' होता है, बनता-मिटता रहता है। मैटर एक अलग चीज़ है, ‘फार्म' एक अलग चीज़ है। वह मैटर नहीं है। फॉर्म के जो गुण हैं वे मैटर के नहीं हैं, लेकिन फॉर्म मैटर का होता है। भौतिक विज्ञान पदार्थ के जिन गुणों को सन्दर्भ में लेता है वे 'फॉर्म' के हैं, फॉर्म के साथ बदलते रहते हैं। वे गुण 'मैटर' के नहीं हैं। 'मैटर' का कोई गुण नहीं है। गुलाब के फूल की गन्ध, रसीले फल का स्वाद, मरमरी घास का स्पर्श. वाद्य-यन्त्र की मधुर ध्वनि, मोनालिसा की मोहक मुस्कान-ये सब जुड़े हैं ‘फॉर्म' से। फॉर्म आकार नहीं होता यद्यपि आकार या 'शेप' फॉर्म का एक प्रकार है। फॉर्म है परिवर्तन-क्रम की परिणति। परिवर्तन निरन्तर होता है अतः फॉर्म बदलता रहता है। फॉर्म एक अभिव्यक्ति है और अभिव्यक्ति का माध्यम गुण या क्वालिटी होता है। क्वालिटी के बिना फॉर्म नहीं हो सकता, फॉर्म के बिना क्वालिटी नहीं हो सकती। जिसे भौतिक-विज्ञानवेत्ता अन्ततः शुन्य-क्षेत्र 'फील्ड' में घटनाओं के रूप में देखता है, वह भी फॉर्म है। वह भी अभिव्यक्ति है। महावीर के शब्दों में वह भी 'पर्याय' है। गलना-ढहना, आकार ग्रहण करना, आकर-परिवर्तन करते जाना ये सब फॉर्म के अन्तर्गत आते हैं, पर्याय के अन्तर्गत आते हैं। पर्याय पदार्थ की परिणति है, स्वयं पदार्थ नहीं। गलना-ढहना पुद्गल की परिणति है, स्वयं पुद्गल नहीं। अपने आपमें 'पुद्गल' क्या है ? पदार्थ क्या है ? हम नहीं जानते। विज्ञान तो गणितीय समीकरण सूत्रों तक जाता है, सूत्र फॉर्म की सीमा पर रुक जाते हैं, उन्हें वहीं छोड़कर विज्ञान लौट जाता है। उसे नहीं जाना जा सकता, इसे वह स्वीकार कर लेता
भेद पदार्थ में है, ज्ञान में नहीं
हर्बर्ट स्पेंसर ने दस भागों के एक महाग्रन्थ 'सिन्थेटिक सिस्टम ऑफ आल नॉलेज' के अन्त में स्वीकार किया है कि जो सत्-'रियलिटी'-है, वह अज्ञेय-'अननोएब्ल'–है। महावीर कहते हैं, यहां भी रुकने की आवश्यकता नहीं। ज्ञान के आयाम अनन्त हैं। डेमोक्रिट्स परमाणु पर आकर रुक गया था। रस, रूप, गन्ध, स्पर्श आदि प्रत्येक परमाणु में है, यह प्रतिष्ठापित कर जे एग जाणइ से सव्वं जाणइ
Jainism: The Global Impact
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