Book Title: Indriya Gyan
Author(s): Sandhyaben, Nilamben
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 7
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है ओतप्रोत-प्रवचन देकर तत्त्वपिपासु जीवों को ज्ञानामृत का पान कराया। मोक्षमार्ग का प्रकाश किया। हे परमोपकारी! हे मोक्षमार्ग के प्रकाशक! मुमुक्षु समाज का मस्तक आपश्री के चरण कमल में अत्यन्त विनम्र भाव से सदा नत मस्तक रहेगा! पूज्य गुरुदेव श्री के अनन्य भक्त, धर्मसुपुत्र, अध्यात्मवेदी पूज्य श्री लालचन्द्र भाई जी ने फरमाया कि “ पूज्य गुरुदेव श्री के ४५ वर्ष की स्वानुभवमयी दिव्य वाणी का दोहन यह है कि : • शुद्धात्मा का स्वरूप क्या है ? • शुद्धात्मा के अनुभव की विधि क्या है ?" शुद्धात्मा का स्वरूप बताते हुए पू. गुरुदेव श्री ने फरमाया कि 'आत्मा अकर्ता है' यह जैनदर्शन की पराकाष्टा है। और अनुभव की विधि बताते हुए कहा कि 'आत्मा वास्तव में पर को जानता ही नहीं है तो फिर पर की तरफ उपयोग लगाने की बात ही कहाँ रही? 'ज्ञायक ज्ञायक को जानता है ये भी भेद होने से व्यवहार है, ज्ञायक ज्ञायक ही हैं-ये निश्चय है।” ऐसा परमप्रयोजनभूत एकांतहितकारी करुणाभीना उपदेश देकर पू. गुरुदेव श्री ने समाज के ऊपर अनन्त अनन्त उपकार किया है। पू. गुरुदेव श्री के उपकार की तो बात ही क्या है!!! अनन्त अनन्त उपकार किया है! हम विनत हैं! परन्तु इस मूल उपदेश के रहस्य को समाज के अल्प मुमुक्षु ही समझ पाये थे। पू. श्री लालचन्द्र भाई जी ने पू. गुरुदेव श्री के मूल उपदेश पर ध्यान केन्द्रित कराया है कि - Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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