Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 9
________________ पांचों में ढल कर भान इस रूप में विराजमान है-यह जानना प्रत्येक हन्दी पाठक के लिए भावश्यक है। हिन्दी साहित्य के अब तक के इतिहासकार प्रायः दसवीं शताब्दी से पूर्व नहीं गये। उन्हें हिन्दी के आदि कवि स्वयम्भू का बिल्कुल पता नहीं, वह सरहपा तक को नहीं पहचानते। प्रदेय पं० राथूराम प्रेमी और महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इन दोनों को तरफ हिन्दी संसार का ध्यान आकृष्ट किया। इस पुस्तक में आप पाएंगे कि से अपभ्रंश के माध्यम द्वारा जैन कवियों ने भाज की इस हिन्दी को अंकुरित दिया और उस अंकुर को सींच सींचकर कैसे उन्होंने बालवृक्ष बना दिया। विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक को साहित्यसेवा की पुनीत भावना से लिया है, और इसी भावना से प्रेरित होकर इसे ज्ञानपीठ को प्रकाशन के लिए दिया है। शामपीठ उनका आभार मानता है। -सम्पादक

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