Book Title: Hemchandracharya ni Agam vani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ फेब्रुआरी २०११ श्री हेमचन्द्राचार्य विरचित प्रमाणमीमांसाना परिप्रेक्ष्यमां मतिज्ञानना उत्पत्तिक्रमनी विचारणा मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय — कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य विरचित प्रमाण-मीमांसा जैनदर्शन सम्मत प्रमाणव्यवस्थानी चर्चा करता ग्रन्थोमां महत्त्वनुं स्थान धरावे छे. आ ग्रन्थनो बहु ओछो अंश उपलब्ध होवा छतां, एना गम्भीर प्रतिपादन तेमज मौलिक विचारणाओने लीधे भारतवर्षना दार्शनिक क्षेत्रे अनुं प्रदान बहुमूल्य गणाय छे. आम तो कलिकालसर्वज्ञना ग्रन्थोमां मुख्यत्वे प्राचीन परम्पराओनो सर्वग्राही व्यवस्थित संग्रह करवानुं वलण जणाय छे. परन्तु प्राचीन परम्पराने योग्य परिष्कार करीने ज तेओ स्वीकारे छे ते तेओनी लाक्षणिकता छे. प्र.मी.गत मतिज्ञान ओटले के इन्द्रिय अने मनथी जन्य प्रत्यक्षनुं निरूपण से दृष्टि बहु ध्यानार्ह छे. आ निरूपण आगमिक परम्परा अनुसार ज होवा छतां अने वधु तर्कसंगत बनाववा अमां केटलाक परिष्कार करवामां आव्या छे. आ निरूपणने केन्द्रमां राखी आपणे क्रमशः नीचेना मुद्दाओ तपासीशुं : १. मतिज्ञानोत्पत्तिनुं आगमिक वर्णन (आगमिक परम्परा) २. मतिज्ञानोत्पत्तिनुं प्र.मी. गत वर्णन ( तार्किक परम्परा) ३. ओ बन्ने वच्चे मुख्य भिन्नता ४. भिन्नतानां सम्भवित कारणो ५. उपलब्ध थती बे परम्परा वच्चेनी चर्चा ६. बे परम्पराओनो सम्भवित समन्वय ७. प्र.मी.ना निरूपणनी केटलाक जैन ग्रन्थो साथे तुलना १५ मतिज्ञानोत्पत्तिनुं आगमिक वर्णन आगमिक परम्पराने सम्मत मतिज्ञानना उत्पत्तिक्रमनुं विशद वर्णन वि.भाष्यमां' मळे छे. तदनुसार श्रोत्र, घ्राण, रसन अने स्पर्शन आ चार प्राप्यकारी - १. गाथा १७८-३५४ २. जे इन्द्रिय विषय साथे संयुक्त थया पछी ज बोध करवा समर्थ बने छे ते इन्द्रिय प्राप्यकारी कहेवाय छे. चक्षु अने मन अप्राप्यकारी छे.

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