Book Title: Hemchandracharya ni Agam vani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 17
________________ २६ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ उपलब्ध थती बे परम्परा वच्चेनी चर्चा : अवग्रहमां प्राथमिक विशेषोनुं ग्रहण होय पक्ष बहु प्राचीन काळथी अस्तित्व धरावे छे. वि.भाष्यमां जे विस्तारथी आ मतने सम्बन्धित चर्चा छ ? ते जोतां श्रीजिनभद्रगणिना समय सुधीमां आ मते बहु ऊडां मूळियां नांखी दीधां होवानुं जणाय छे. आ पक्षना टेकेदारो पासे महत्त्वनो आधार होय तो ओ नन्दीसूत्रगत अवग्रहादिविषयक पाठनो हतो. आ पाठ परथी अवग्रहमां अव्यक्तसामान्यनुं नहीं; पण प्राथमिक विशेषोनुं ग्रहण होय अq सीधेसीधुं फलित थतुं हतुं. नोंधपात्र वात ओ पण छे के दिगम्बर परम्परा जे अवग्रह पूर्वे दर्शनअस्तित्व पहेलेथी स्वीकारती आवी हती, ते पण आ पाठना आधारे साबित करी शकाय तेम हतुं. नन्दीसूत्रमा श्रावणप्रत्यक्षनी उत्पत्ति वर्णवतो पाठ आम छे : "से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणेज्जा, तेणं सद्देत्ति उग्गहिए, न उण जाणइ के वेस सद्देत्ति.... ।" आमां "तेणं सद्देत्ति उग्गहिए" ओ वाक्यनो तार्किको “तेण (= प्रमाता व्यक्तिमे) शब्द ओवो अवग्रह कर्यो" आवो अर्थ करी, अवग्रहमां शब्दत्व जेवा प्राथमिक विशेषोना ग्रहणने पण नकारनारी आगमिक परम्परा सामे वांधो ऊठाव्यो. __आनी सामे श्रीजिनभद्रगणिजे आपेलो जवाब आ मुजब छे :४ "शब्द अवो अवग्रह कर्यो' अर्बु नन्दीसूत्रना पाठ परथी भले जणातुं होय; पण अनुं तात्पर्य वास्तवमां जूहूँ ज होवू जोईओ. कारण के १. 'आ शब्द छ' ओ ज्ञान वाचक शब्दना उल्लेखपूर्वकनुं छे. अने वाचक शब्दनो उल्लेख अन्तमुहूर्त सिवाय सम्भवे नहीं. तो अकसामयिक अर्थावग्रहमां आ बोध घटे ज कई रीते ? २. 'आ शब्द छे' ओवा बोध माटे रूपादिनो व्यवच्छेद आवश्यक छे अने आ व्यवच्छेद ईहा वगर थाय नहीं. व्यञ्जनावग्रह अने अर्थावग्रह वच्चे काळव्यवधान १.-४. वि.भाष्य - गाथा २५२-२८८ २. “विषयविषयिसन्निपाते सति दर्शनं भवति, तदनन्तरमर्थस्य ग्रहणमवग्रहः' - सर्वार्थसिद्धि __- १.१५, त.वा. - १.१५.१ ३. “अव्वत्तं सदं सुणेज्जा" ओ वाक्य दर्शन- अस्तित्व सूचवे छे अम मानी शकातुं हतुं.

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