Book Title: Hemchandracharya ni Agam vani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
करवा जेटली परिपक्व बने छे. आ परिपक्वता पण कंई ते ज क्षणे प्रगटी ओवू नथी; पण घणी क्षणोथी धीमे धीमे थती आवे छे ओम मानवू पडे. अग्निथी भात रंधाय अq ज अहीं समजवानुं छे. आमां परिपाकनी प्रक्रियानो काळ व्यञ्जनावग्रह छे अने परिपक्वतानो काळ ओ अर्थावग्रह छे. आमां आपणे अंक दृष्टिले जोईओ तो चरम परिपक्वता ज अर्थावग्रह गणाय; अने अर्थावग्रहने ओक समयनो कहेवो पडे. परन्तु आपणे जो न्यूनाधिक परिपक्वतावाळी तमाम क्षणोने ध्यानमां लई); अने वास्तवमा एम ज करवू जोईओ, नहीं तो सहेज पण ओछो रंधायेलो भात रंधाया वगरनो गणाय; तो परिपक्वता-अर्थावग्रह- 'कंइक छे' अवो बोध अन्तर्मुहूर्तकालीन ठरे छे. तार्किकोओ कदाच आ वस्तुस्थितिने नजर समक्ष राखी छे.
रही वात 'आ शब्द छे' एवा बोधमां वाचक शब्दना उल्लेखनी. 'कंइक छे' एवो बोध शब्दोल्लेख वगर सम्भवे, तो 'शब्द छे' एवा बोधमां शब्दोल्लेखनी अनिवार्यता शा माटे ? आपणने क्यारेक 'शब्द छे' अवो शब्दात्मक उल्लेख थया वगर सीधो 'कागडो बोले छे' अवो शब्दोल्लेखवाळो बोध नथी थतो ? आ वस्तु ज सूचवे छे के तेनी पूर्वे 'शब्द छे' ओवो बोध शब्दोल्लेख वगर थयो हतो. अq समाधान पण अहीं न सूचवी शकाय के आपणने ज्यारे 'कागडो बोले छे' अवा शब्दोल्लेखवाळो बोध ध्यानमां आव्यो, त्यारे तेनी पहेलां थवो जरूरी ओवो 'शब्द छे' अवो बोध शब्दोल्लेख साथे ज थयो हतो, पण शीघ्रताने लीधे आपणने खबर न पडी; कारण के शब्दोल्लेख ओ जल्दी ध्यानबहार जाय ओवी वस्तु नथी. ट्रॅकमां, वाचक शब्दना उल्लेखने लीधे ज 'आ शब्द छे' अवा बोधना अर्थावग्रहकालीन अस्तित्वनो निषेध न करी शकाय.
१. आ व्यक्तता-परिपक्वतानी साथे ज पुद्गलो 'अर्थ' रूपे गृहीत थाय छे; मतलब के तेमनी
ज्ञानना विषय तरीके स्थापना थाय छे. आ व्यक्तता आवतां पहेलां पुद्गलो पुद्गल तरीके ज गृहीत थाय छे, कोइ चोक्कस अर्थ रूपे नहीं, तेथी ओ धीमे धीमे प्रगटता जतां पुद्गलो 'व्यञ्जन' तरीके ओळखाय छे. जेनी व्यञ्जना - प्रगटीकरण थाय ते व्यञ्जन ओवो अत्रे भाव छे. आ अर्थ अने व्यञ्जननो अल्प बोध अनुक्रमे अर्थावग्रह अने व्यञ्जनावग्रह तरीके ओळखाय छे. अर्थनी विशद व्याख्या माटे जुओ तत्त्वार्थ - १.१७ टीकाओ.

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