Book Title: Hemchandracharya ni Agam vani
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ फेब्रुअरी २०११ शब्दत्व व.नो निश्चय थाय छे ते 'अपाय' कहेवाय छे. 'आ शब्द छे' व. आकारनो आ निश्चय अन्तर्मुहूर्त सुधी टके छे. त्यारबाद त्रण विकल्प सम्भवे छे : १. अपायनी विषयभूत वस्तु जो त्यारे उपेक्षणीय होय तो त्यां ज आ प्रक्रिया थंभी जाय अने नवी वस्तु माटे प्रक्रिया आरम्भाय. २. जेनो निश्चय थयो होय तेना ज विशेषो विशे आगळ विचारणा चाले. दा.त. 'आ शब्द स्त्रीनो हशे के पुरुषनो ?' आ संजोगोमां अपाय से आगळना अपायनी अपेक्षाओ अर्थावग्रह गणाय छे, के जेने नैश्चयिक अर्थावग्रहथी अलग पाडवा 'व्यावहारिक अर्थावग्रह' कहेवामां आवे छे. निश्चय → विचारणा → निश्चयनी आ परम्परा क्यां सुधी लंबाय ते व्यक्तिनी जिज्ञासा पर आधार राखे छे. ३. घणीवार, खास करीने इष्ट वस्तुमां, 'आ शब्द छे, आ शब्द छे' ओवा प्रकारनो निश्चय वारंवार थया करे छे. आ धारावाहिकज्ञानपरम्परा 'अविच्युति धारणा' तरीके ओळखाय छे. आ त्रणे विकल्पो कोई पण अपाय पछी सम्भवी शके छे. १७ अविच्युति धारणा, प्रमातानुं ध्यान अन्य वस्तुमां खेंचाय अने नवी ज्ञानोत्पत्तिनी प्रक्रिया आरम्भाता नष्ट थाय तो पण, आत्मामां पोतानी छाप छोडती जाय छे. आ छाप ‘संस्कार' अथवा 'वासना' नामनी धारणा गणाय छे, के जे स्मृतिना आवारक कर्मना क्षयोपशमरूप अथवा स्मृतिज्ञानोत्पादक शक्तिरूप छे. कालान्तरे कोई उद्बोधक सांपडे तो संस्कार उद्बुद्ध थतां आपणने पूर्वे अनुभवेला पदार्थनी जे याद आवे ते 'स्मृति धारणा' कहेवाय छे. मतिज्ञानना भेदोनी गणतरी वखते 'निश्चयनुं अवधारण अ धारणा' ओवी व्याख्या बनावी त्रणे धारणाओने ओक ज भेदमां समावी देवामां आवे छे. अने माटे धारणानुं कुल काळमान असंख्य वर्षोनुं गणाय छे. ज्ञानोत्पत्तिनी आ प्रक्रियाना बधा ज तबक्का क्रमशः आ रीते ज थाय छे. अतिपरिचित वस्तुमां सीधो अपाय थयो होवानुं आपणने जणाय अने बधा तबक्कानो स्पष्ट ख्याल न पण आवे; परन्तु त्यां पण आ समग्र प्रक्रिया शीघ्रपणे अवश्य थई ज होय छे. आ क्रममां कशुं आगळ-पाछळ थवानो सम्भव नथी ते पण स्पष्ट जोई शकाय छे. हा, वधु ध्यानार्ह वस्तुविषयक ज्ञाननी नवी प्रक्रिया आरम्भाय तो जूनी वच्चेथी अटकी जाय तेम बने. पण १. 'अपाय' कहेवाय के 'अवाय' ? ते माटे जुओ त. वा. - १.१५.१३

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