Book Title: Gyanbindu Parichaya
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 3
________________ ३७७. ज्ञानबिन्दुपरिचय सभी देशों के विद्वानों की यह परिपाटी रही है और आज भी है कि वे किसी विषय पर जब बहुत बड़ा ग्रंथ लिखें तब उसी विषय पर अधिकारी विशेष की दृष्टि से मध्यम परिमाण का या लघु परिमाण का अथवा दोनों परिमाण का ग्रंथ भी रचे । हम भारतवर्ष के साहित्यिक इतिहास को देखें तो प्रत्येक विषय के साहित्य में उस परिपाटी के नमूने देखेंगे। उपाध्यायजी ने खुद भी अनेक विषयों पर लिखते समय उस परिपाटी का अनुसरण किया है। उन्होंने नय, सप्तभंगी आदि अनेक विषयों पर छोटे-छोटे प्रकरण भी लिखे हैं, और उन्हीं विषयों पर बड़े-बड़े ग्रंथ भी लिखे हैं। उदाहरणार्थ 'नयप्रदीप', 'नयरहस्य' श्रादि जब छोटे-छोटे प्रकरण हैं, तब 'अनेकान्तव्यवस्था', 'नयामृततरंगिणी' आदि बड़े या पाकर ग्रंथ भी हैं । जान पड़ता है ज्ञान विषय पर लिखते समय भी उन्होंने पहले 'ज्ञानार्णव' नाम का अाकर ग्रंथ लिखा और पीछे ज्ञानबिंदु नाम का एक छोटा पर प्रवेशक ग्रंथ रचा । 'ज्ञानाव' उपलब्ध न होने से उसमें क्या-क्या, कितनी-कितनी और किस-किस प्रकार की चर्चाएँ की गई होंगी, यह कहना संभव नहीं, फिर भी उपाध्यायजी के व्यक्तित्वसूचक साहित्यराशि को देखने से इतना तो निःसन्देह कहा जा सकता है कि उन्होंने उस अर्णवग्रंथ में ज्ञान संबन्धी यच्च यावच्च कह डाला होगा । आर्य लोगों की परंपरा में, जीवन को संस्कृत बनानेवाले जो संस्कार माने गए हैं उनमें एक नामकरण संस्कार भी है। यद्यपि यह संस्कार सामान्य रूप से मानवव्यक्तिस्पी ही है, तथापि उस संस्कार की महत्ता और अन्वर्थता का विचार आये परंपरा में बहुत व्यापक रहा है, जिसके फलस्वरूप आर्यगण नामकरण करते समय बहुत कुछ सोच विचार करते आए हैं। इसकी व्याप्ति यहाँ तक बढ़ी, कि फिर तो किसी भी चीज का जब नाम रखना होता है तो, उस पर खास विचार कर लिया जाता है। ग्रन्थों के नामकरण तो रचयिता विद्वानों के द्वारा ही होते हैं, अतएव वे अन्वर्थता के साथ-साथ अपने नामकरण में नवीनता और पूर्व परंपरा का भी यथासंभव सुयोग साधते हैं। 'ज्ञानबिन्दु' नाम अन्यर्थ तो है ही, पर उसमें नवीनता तथा पूर्व परंपरा का मेल भी है। पूर्व परंपरा इसमें अनेकमुखी व्यक्त हुई है। बौद्ध, ब्राह्मण और जैन परंपरा के अनेक विषयों । के ऐसे प्राचीन ग्रन्थ आज भी ज्ञात हैं, जिनके अन्त में 'बिन्दु' शब्द आता है । धर्मकीर्ति के 'हेतुबिन्दु' और 'न्यायबिन्दु' जैसे ग्रन्थ न केवल उपाध्यायजी ने नाम मात्र से सुने ही थे बल्कि उनका उन ग्रन्थों का परिशीलन भी रहा । वाचस्पति मिश्र के 'नत्त्वबिन्दु और मधुसूदन सरस्वती के 'सिद्धान्तबिन्दु आदि ग्रन्थ सुविश्रुत हैं, जिनमें से 'सिद्धान्तबिन्दु' का तो उपयोग प्रस्तुत 'ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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