Book Title: Gunsthan Vivechan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Mi 26. २५१.०० २५१.०० अध्याय पहला सम्यग्ज्ञानचंद्रिका-पीठिका __ (दोहा) प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची १. डॉ. वासन्ती शाह, मुंबई १०००.०० २. श्रीमती कुसुम जैन ध. प. श्री विमलकुमारजी जैन, नीरु केमिकल्स, दिल्ली ५०१.०० ३. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज ५०१.०० ४. श्री प्रेमचन्दजी जैन हैटवाले, नई दिल्ली २५१.०० ५. श्री बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल ६. श्री मयूरभाई एम सिंघवी, मुंबई ७. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल, सूरत २५१.०० ८. श्रीमती पतासीदेवी इन्द्रचन्दजी पाटनी, लाँडनू २५१.०० ९. स्व, ऋषभकुमार जैन पुत्रश्री सुरेशकुमारजी जैन, पिड़ावा २५१.०० १०. श्रीमती मैनादेवी ध, प. पं. सिद्धार्थकुमारजी दोशी, रतलाम ११. ब्र. कुसुमताई पाटील, कुंभोज २५१.०० १२. डॉ. अनूपजी जैन, इन्दौर २५१.०० १३. श्री शान्तिलालजी कासलीवाला, ब्यावर २५१.०० १४. श्रीमती श्रीकांताबाई ध.प. पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर २०१.०० १५. श्रीमती नीलू ध.प. राजेशकुमार मनोहरलालजी काला, इन्दौर । १६. श्रीमती ऊषा सावलकर, नागपुर २०१.०० १७. श्रीमती लीलाबाई वाकले, नागपुर २०१.०० १८. श्री मदनलालजी कोठारी, बिनौता २०१.०० १९, गुप्तदान, हस्ते वैभवकुमार जैन, सत्येन्द्रकुमार जैन, सहारनपुर २०१.०० २०. श्री धन्यकुमारजी अजमेरा, इन्दौर २१. श्रीमती आशा विमलचन्दजी जैन, इन्दौर २०१.०० २२. श्री लक्ष्मीचन्दजी बंडी, उदयपुर २३. श्रीमती मंजुला हेमन्तजी बडजात्या, इन्दौर २००.०० २४. श्रीमती सरिता जैन, इन्दौर २००.०० २५. स्व. धापूदेवी ध.प. स्व. ताराचन्दजी गंगवाल जयपुर की पुण्यस्मृति में १५१.०० २६. श्रीमती पानादेवी मोहनलालजी सेठी, गोहाटी १०१.०० कुल राशि : ६९७२.०० वन्दौं ज्ञानानन्द-कर, नेमिचन्द गुणकंद। माधव-वन्दित विमल पद, पुण्य पयोनिधि नंद||१|| दोष दहन गुन गहन घन, अरि करि हरि अरहंत। स्वानुभूति-रमनी-रमन, जग-नायक जयवंत ||२|| सिद्ध शुद्ध साधित सहज, स्वरस सुधारस धार। समयसार शिव सर्वगत, नमत होऊ सुखकार ||३|| जैनी बानी विविध विधि, वरनत विश्व प्रमान। स्यात्पद मुद्रित अहितहर, करहु सकल कल्यान ||४|| मैं नमो नगन जैन जन, ज्ञान-ध्यान धन लीन । मैन मान बिन दान धन, एन हीन तन छीन ||५|| इह विधि मंगल करन तें, सब विधि मंगल होत। होत उदंगल दूरि सब, तम ज्यों भानु उद्योत||६|| अब मंगलाचरण करके श्रीमद् गोम्मटसार, जिसका अपर नाम पंचसंग्रह ग्रन्थ, उसकी देशभाषामय टीका करने का उद्यम करता हूँ। यह ग्रन्थसमुद्र तो ऐसा है, जिसमें सातिशय बुद्धि-बल युक्त जीवों का भी प्रवेश होना दुर्लभ है और मैं मंदबुद्धि (इस ग्रन्थ का) अर्थ प्रकाशनेरूप इसकी टीका करने का विचार कर रहा हूँ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 142