Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad

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Page 38
________________ खुनी नेन खंजरसें लगाय गयो रे // 1 // मेरे हियरा कैसे राखुं समझाय / टेक, नित बरजु बरजो नहि मानत, समर, समर दुख पाय, मेरे. मीठी मीठी बतियां जू कहत मोसु, रहे पर घर ललचाय, मेरे. दयाके प्रीतमकु दया नहि आवत, तलप तलप जिय जाय, मेरे.॥१॥ जोबन रस झलकाय, रसिया रोस तजोजी; प्यारे सुखको बहार बहि जाय-रसिया रोस तजोजी तुम मधुकर हम केतकी, सदा बन्यो संजोग; कंटक दोस बिचारीये कैसे बने रसभोग. रसिया. // 1 // मेरे नैनां मोहन जाय बरजो ना रहे - नालो ना रहेक कहकर देखो कह्यो न माने आलो, कस्के कोटी उपाय: मेरे नैना त्या त्या अधिक अधिक ललचाय, जैसे लोह चमकपर दो रे (तेसें) मेरे नैनां मोहन जाय. मेरे. (पिंमलशी गढवी) પ્રવીણસાગર ગ્રંથના રચનાર મેહેરામણસિંહજીના મિત્ર આ પિંગળશી शस्वीनी विता प्रवीशुसागरमा पY छ. ते सिवाय भो "बैंकंठ पिंगल" नामे 5 २-यो छ. यो पालना २ली। हता. (डुंगर बारोट) - A પ્રાંતના કલોલ તાબે વિજાપુરના રહીશ ડુંગર બારોટ પણ પિતાની કવિતા સારૂ પ્રખ્યાત હતા. એમણે હિંદુસ્તાનમાં પરચુરણ કવિતા સારી રચી છે. એમના વંશજો હાલ પણ વિજાપુરમાં છે. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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