Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad

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Page 61
________________ राजै गुनबोज गहीराई है गंभीरताई, नव परभाव भावै धाट विसरामकी । सविता सुतासी वृज पाबन करन इत, आई कविताई कवि दलपतिरामकी ॥ શ્રાવણાખ્યાનમાંથી ચેડાં અવતરણે અસ્થાને નહિ લખાયश्रवन कहै तव पितु घर ठरना, तब मम पितरन, का गति करना। सुनि सावित्रि कहै सिर नामी, क्षमा करहू सुनि मम वच स्वामी ॥१०३।। जब वय वृद्ध पितर निज पावै, सुपुत तबे तिन स्वर्ग पठावें । काशीके करवतें कटावै, अरु गंगाजल माँहि बहावै ॥ १०४ ।। गंगा सम सरयू गतिदाई, बेद पुरान कहत गुन गाई । सर्जुमें हृद यहै अगाधा, बहूत पुनित हरहि भव बाधा ॥१०५॥ जल प्रवेश तव पितरन करनां, सुपुत्रताको यश शिर धरनां । करही पितु मातुन कल्याना, ताके सम सुत कौन सयाना ॥१०६॥ में मन क्रमसे दासी तुम्हारी, सासु उठाई लहों सिरधारी । तुम निज तातकुं योंहि उठाओ, उक्त प्रमान स्वरग पहुँचायो ॥१०७॥ (२) मनहूते मायरकी ममता न मूकै कबु, अंतरमें अल्प बोज राखे नहि अन्यका ॥ सौध तजि कैसे मन मानै पेखी पर्न कुटी, नागरिकों कैसे रुचै आश्रम अरण्यका ।। विविध वसन तजी कैसे रुचै बल्लकल, '' धिकं अवतार होत अवतार धन्यका ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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