Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad
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टूटि गए साहूकार, उठ गई धीर धार, नहिं कोऊ कोऊ यार बैरी सगो भाई हैं. खाने कूँ तो विष नहि रहने कुँ घर नहीं, बात कहा कहुँ यार सभी दुःखदाई है. कहत फकीरुद्दीन सुन ए चतुर जन, टूटि गए तो भी पक्के सूरति सीपाई है.
( भट्टार्क कनककुशल )*
એ કવિનું રાજા લખપતીના યશઃવન પર લખાયેલું “ લખपती - यश-सिंधु " नामनुं पुस्ता उपलब्ध थाय छे.
अचल विव्यसे अनुत्र कुधौं ऐरावत उरत विकट वैर वैताल कनक संघट जब क्रूरत अरि गढ गंजन अतुल सदल श्रृंखल बल तोरत अरर गल्ल मद मरत सजल, सुंडनि अकओरत ऐसे प्रचंड सिंधुर अकल, महाराज जिय मान अति फए दिल्लीस लखपतिको, कहे जगत् धनि कच्छपति ॥ ( जसुराम )
એમને મુખ્ય ગ્રન્થ રાજનીતિ વિષય પર લખાયેલા છે. આ કવિ ભરૂચ-જીલ્લાના આમેાદ ગામના રહેવાશી તથા જામનગર રાજાના આશ્રિત કવિ હતા.
पढिबे ते मालुम पडत पाछी नीति अनीति ।
जसुराम चारण कही राजनीति की रीति ॥
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* ! विनी हुडीत भी. रतिजन्ते पुरी पाडी छे.
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