Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad

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Page 43
________________ दोऊ मन प्रेम बान लगें ज्यों लगे निशान में अयान तनत्रान छेदन भये दई ल. 14-22 // सागर जात गयंद चढे सु, प्रबीन झरोख चढी उमगी। दूर कियो चिक दीठ जुरी जुग, रीझ भइ भरि लाज भगी। दामनि ज्यौं सु दमक गई चित, दोउनके सु चमंक लगी। होत नहीं बिरहानल उद्दित, प्रेम जरीक जगी चिनगी ।ल. 14-23 // कटि फेंट छोरनमें, भ्रकुटी मरोरनमें, .. .. सीस पेंच तोरनमें, अति उरझायकें / मंद मंद हांसनमें, बरुनी बिलासनमें, आनन उजासनमें, चकचोंध छायकें / मोती मनि मालनमें, सोसनी दुसालनमें, . चिकुटीके तालनमें, चेटक लगायकें / प्रेम बान दे गयो, न जानिये किते गयो, सु पंथी मन लेंगयो, झरोखे द्रग लायकें ।ल. 18-2 // सुगंध समीर जैसे, हंस बार छोर सैंसें, भू जल मिहीर जैसे, मयूषी चढायकें / पारद कुमारी जैसे, हरी स्वांत धार जैसे, _अंम्र एनसार जैसें, धूम उरझायकें / उकती एकदंत जैसें, शुद्ध बोध संत जैसें, मित बात मित जैसें, सेनन जनायकें / प्रेम बानx x x. ल. 18-3 // Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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