Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad
View full book text ________________ दाखत ब्रह्मानंद, नहि पतर अरु झोली / घर घर कह्यो सुनाय, जायके मच्छी भोली // 4 // मच्छी महातम जानके, गई नीकट दसबार / पग कर पकडी पंचकुं, चंच ग्रही दोय चार // चंच ग्रही दोय चार, सिद्ध भये लोक छलनकुं / बपुरी करत बकोर, ध्यान तज लग्यो गलनकुं // दाखत ब्रह्मानंद, ग्रहो लखी अच्छी अच्छी / गई नीकट दस बार, जान कर महातम मच्छी // 5 // ऐसे साधु जगतमें, फीरतहि भेख बनाय / उदर भरनके कारने, लोकनकुं भरमाय / लोकनकुं भरमाय, नही जानत हरी लेशा / परधन परत्रीय काज, करत रहे जाप हमेशा / / दाखत ब्रह्मानंद, ध्यान धरहे बग जैसे। फीरत हे भेव बनाय, जगतमें साधु एसे // 6 // (ब्रह्मविलास) रसिया रंग रास विलास करें, कटी जोर पीतांबरसे कसिया / कसिया भर नेन चलावत हे, रंग रीझत भिंज रसब्बसिया // बसिया सुरतें ग्रह त्याग चली, व्रजनार उजार लखी शशिया / शशियादिक आनन कान धरे, कहे ब्रह्म सनेह गले रसिया // 4 // उरमें बन माल बिशाल लसे, बिलसे रमनी धुनि नेपुरमें। पुरमें त्रय व्याप रही मोरली, बन बाजत हे मधुरे सुरमें / / Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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