Book Title: Gujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Author(s): Dahyabhai Pitambardas Derasari
Publisher: Gujarat Varnacular Society Ahmedabad
View full book text ________________ उ अहैं खगराज जैसे, चिरियां सु बाज जैसें, केहरी सु गाज जैसे, प्रांन निकसाय के / जलचर झपाह जैसें, मीन मीनहाह जैसे, कीर पंखप्राह जैसें, फंद उरझाय के / भागीरथ गंग जैसें, घंटिक कुरंग जैसें, कुहिया कुलंग जैसें, भूतल भ्रमाय के / प्रेम बान दे गयो x x x ल. 18-4 // बातन घात भइ हें इते पर, घात अनंग रची क्यों निवारों / अंबरलों घर ज्वाल उठी जर, तापर पाय कहां निरधारों // कोश पचाशक पांच भये डग, पांच भये डग कोश हजारो / या दिन याद करो न प्रबीन जु, कानहुँ फिरयाद पुकारो।ल.३०-१७॥ आस बिलोकन आस हमें बिस बास बडो सु निराश धरो नां / अमृतकी जु भरी अखियां उनही अखियां बिष बुंद भरो नां / / प्रांन समांन कियोहै हमें वह, बोत दिनांको सने बिसरो नां / पोर ख रेकरजोर अहोनिश, तासें प्रबीन मरोर करो नां ॥ल.३०-१८॥ नेनन नीरनको झरबो भरबो अति सास उदास उसासी / बात कहा उरझो सुरझेन रहे मुरझाय बिदेशके बासी // "छूटहिगी न छुटेबो करो कह, कंठ परीहे सनेहको फांसी / मित प्रबीन भई सुभई, अब हेतहुकीन करो तुम हांसी।। ल.३०-१९॥ परसें पुरवा धुरवा धरसें, धरसे बढि बेलि चढी तरसें / तरसें चित चातुकके हरसें, हरमें दुति दामिनि अंबरसें // Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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