Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2 Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 12
________________ ति , पर्याप्त ७४ गो० जीवकाण्डे तियंच सामान्य असंयत सम्यग्दृष्टिमें सामान्य मनुष्य मिथ्यादृष्टि पर्याप्त बीस प्ररूपणाओंका कथन ९६४ बीस प्ररूपणा ९७१ " , असंयत पर्याप्त " , अपर्याप्त " , असंयत अपर्याप्त " सासादन सामान्य तिर्यञ्च देश संयत पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च , अपर्याप्त , पर्याप्तक सम्यग्मिध्यादृष्टि अपर्याप्तक असंयत मिथ्यादृष्टि असंयत पर्याप्त मिथ्यादृष्टि पर्याप्त असंयत अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त संयतासंयत सासादन प्रमत्त सासादन पर्याप्त प्रमत्त पर्याप्त सासादन अपर्याप्त प्रमत्त अपर्याप्त मिश्र अप्रमत्त असंयत अपूर्वकरण असंयत पर्याप्त अनिवृत्ति प्रथम ,, असंयत अपर्याप्त , द्वितीय देशसंयत ___ " " , तृतीय योनिमती योनिमती पर्याप्त योनिमती अपर्याप्त सूक्ष्मसाम्पराय ___, मिथ्यादृष्टि उपशान्त कषाय योनिमती मिथ्यादृष्टि क्षीणकषाय पर्याप्त सयोगकेवली योनिमती मिथ्यावृष्टि , , अयोगकेवली अपर्याप्त मानुषी योनिमती सासादन मानुषी पर्याप्त पर्याप्त , मानुषी अपर्याप्त , , ,अपर्याप्त ,, मानुषी मिथ्यादृष्टि " , मिश्र , ९७० मानुषी पर्याप्त मिथ्यादृष्टि " " , असंयत , मानुषी अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि , देशसंयत सासादन " , लब्ध्यपर्याप्तक सासादन पर्याप्त ९७८ सामान्य मनुष्य सासादन अपर्याप्त " , पर्याप्त सम्यग्मिथ्यावृष्टि " , अपर्याप्त असंयत सम्यग्दृष्टि " , मिथ्यादृष्टि देशसंयत ९७५ ___, चतुर्थ , पंचम १७ ९७७ ७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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