Book Title: Gadyachintamani
Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 3
________________ गद्यचिन्तामणिः जीवन्धरचरितकी लोकप्रियता जीवन्धरस्वामीका चरित लोकोत्तर घटनाओंसे भरा हुआ है अतः उसके अंकनमें विविध लेखकोंने अपना गौरव समझा है। अबतक जीवन्धर चरित के प्रयापक निम्नांकित ग्रन्थ उपलब्ध हुए है १. गद्यचिन्तामणि-वादीसिंह सूरि-द्वारा विरचित गद्य काव्य ।। २. क्षत्रचूड़ामणि - , अनुष्टुप् छन्दोमय काव्य । ३. जीवंधरचरित-गुणभद्राचार्य रचित उत्तरपुराणको ७५बें पर्वका एक अंश । ४. जीवकचिन्तामणि-तिरुतक्क देवर-द्वारा रचित तमिलभाषाका एक प्रसिद्ध काव्य । ५. जीवंधर चरिउ~-पुष्पदन्त कवि-द्वारा रचित अपभ्रंश महापुराणको ९९वीं सन्धि । ६. जीवंधर चम्पू--महाकवि हरिचन्द्र-द्वारा रचित गद्य-पद्यमय संस्कृत चम्पू ग्रन्थ । ७. जीवंधरचरित-अपभ्रंश भाषामय रइधू कवि-द्वारा रचित १३ संधियोंका एक ग्रन्थ । ८. जीवंधरचरिते-वासबके पुत्र भास्करके द्वारा लिखित कन्नड भाषाका १८ अध्यायात्मक १००० श्लोकोंका एक ग्रन्थ । ९. जीवंधरसांगत्य-तेरक नम्बि बोम्मरसके द्वारा लिखित २० अध्यायात्मक १४४९ श्लोकोंका एक कन्नड भाषाका प्रन्थ । १०. जीवंधर षट्पदी-कोटीश्वरके द्वारा लिखित १० अध्यायात्मक ११८ श्लोकोंका एक कन्नड ग्रन्थ । ११. जीवंधरचरित-शुभचन्द्र के पाण्डव पुराणान्तर्गत एक अंश (संस्कृत)। १२. जीवंधरचरिते-ब्रह्मकविका कन्नड भाषात्मक ग्रन्थ । १३. जीवंधरचरित-कवि नथमल द्वारा रचित हिन्दी छन्दोबद्ध रचना । गद्यचिन्तामणिको कथाका प्राधार गचिन्तामणि, क्षत्रचूड़ामणि, जोवकचिन्तामणि और जीवन्धरचम्पूको कथा एक सदृश है। स्थानों तथा पात्रों के नाम एक सदृश हैं। घटनाचक्र-वृत्तवर्णन भी तीनोंका समान है । परन्तु उत्तरपुराणका वर्णन जहां कहीं समानता रखता है तो अनेक स्थानोंपर असमानता भो। उसमें स्थान तथा पात्रोंके नाम भी जहाँ कहीं दूसरे दूसरे हैं। बीच-बीवमें कुछ ऐसी घटनाएं भी उपलब्ध हैं जिनका उक्त तीनों ग्रन्थोंमें उल्लेख नहीं है । गद्यचिन्तामणिकारने यद्यपि प्रारम्भिक वक्तव्यमें निःसारभूतमपि बन्धनतन्तुजातं मूर्ना जनो वहति हि प्रसवानुषङ्गात् । जीवंघरप्रभवपुण्यपुराणयोगाद्वाक्यं ममाप्यभयलोकहितप्रदायि ॥ इस श्लोक-द्वारा जीवन्धरसे सम्बद्ध पुराणका उल्लेख किया है और विद्वान् लोग उनके इस पुराणसे गुणभद्रके उत्तरपुराणान्तर्गत जीवकचरितको समझते हैं पर कथामें भेद होनेसे ऐसा लगता है कि वादोभसिंहने अपने ग्रन्थोंका आधार उत्तरपुराणको न बनाकर किसी दूसरे हो पुराणको बनाया है। पुराणका काव्योकरण तो हो सकता है और अनावश्यक कथाभाग छोड़ा भी जा सकता है। परन्तु स्थान और पात्रोंके नाम आदिमें परिवर्तन सम्भव नहीं दिखता। हाँ, जीवन्धरचम्पूकार महाकवि हरिचन्द्रनें अपने ग्रन्थका आधार जहां गद्यचिन्तामणिको बनाया है वहाँ उत्तरपुराणके वृत्तवर्णनका भी कुछ उपयोग किया है। क्षत्रचूड़ामणिकी भूमिकामें दोनों ग्रन्थोंके उद्धरण देकर श्री टी० एस० कुप्पूस्वामीने यह सिद्ध किया है कि तमिल भाषाके जोवकचिन्तामणिके कर्ता तिस्तक्कदेवने कथाभाग वादीभसिंहतो ग्रन्थों-गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणिसे देखो, 'जीवन्धरचम्यू' की डॉ० उपाध्ये व हीरालाल लिखित अंगरेजी प्रस्तावना ( ज्ञानपीठ प्रकाशन)।

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