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- शब्दों को ही पाते हैं, चारित्र मोहनीय से सम्बंधित किसी शब्द का समावेश वहां नहीं । इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि के ३० से भी अधिक पर्याय धम्मसंगणि जैसे बौद्ध ग्रंथ में उपलब्ध होते हैं जबकि आवश्यक निर्युक्ति में सम्यक्त्व - सामायिक के मात्र ये ७ पर्याय निर्दिष्ट हैं- सम्यग्दृष्टि, अमोह, शोधि, सद्भावदर्शन, बोधि, अविपर्यय एवं सुदृष्टि । ऐसा प्रतीत होता है कि जैनाचार्यों ने सम्यग्दर्शन के आध्यात्मिक पहलुओं पर उतना अधिक ध्यान नहीं दिया जितना कि बौद्ध चिन्तकों ने । जैन कर्मग्रंथों में सम्यग्दर्शन के संबंध में अनेक गम्भीर चिन्तन उपलब्ध हैं । परन्तु उसके बौद्धिक पक्ष पर अपेक्षित प्रकाश नहीं डाला गया है। इसके विपरीत बौद्ध दार्शनिकों ने सम्यग्दर्शन पर विशेष प्रकाश इसलिए डाला कि चारित्र मोहनीय के निराकरण की आधारशिला सम्यग्दर्शन ही है । बौद्धों ने संवर को विशेष महत्व दिया परन्तु तपस्या को आध्यात्मिक साधना का अनिवार्य अंग स्वीकार नहीं किया, जैसा कि जैन परम्परा में किया गया है । यही कारण है कि चारित्र मोहनीय के पर्याय शब्द बौद्ध साहित्य में एक स्थान पर संकलित नहीं किये गये, यद्यपि राग, द्व ेष, मान आदि शब्दों के पर्याय अत्यन्त विस्तृत रूप से उसमें संगृहीत हैं ।
प्रस्तुत कोश एक विशाल योजना का प्रारम्भिक अंग है। परमाराध्य आचार्य श्री एवं युवाचार्य श्री की प्रेरणा से जैन विश्व भारती के शोध विभाग ने जैन आगम शब्द कोश की महान् योजना बनायी है । इसी के अंतर्गत निरुक्त कोश, एकार्थक कोश, देशी शब्द कोश आदि तैयार किये गए हैं । इसी क्रम में अभी दो कोश - निरुक्त कोश तथा एकार्थक कोश प्रकाशित किए जा रहे हैं । प्रस्तुत कोश का सुव्यवस्थित संकलन एवं सम्पादन कर समणी कुसुमप्रज्ञा ने अत्यधिक श्रमसाध्य कार्य को अत्यल्प समय में सम्पूर्ण किया है । इस कार्य में इन्हें मुनि श्री दुलहराज जी का मार्ग-दर्शन निरन्तर प्राप्त होता रहा है । प्रस्तुत कोश में तीन महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी संलग्न किये गये हैं, जिनके आधार पर पाठक सरलता से इस कोश का उपयोग कर सकते हैं । द्वितीय परिशिष्ट में एकार्थक शब्दों की सार्थकता को समझाने का प्रयत्न किया गया है जो कि सराहनीय है ।
मुझे पूर्ण विश्वास है
कि यह कोश सुधी समाज में समादर प्राप्त
करेगा ।
लाडनूं २८-१-८४
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नथमल टाटिया निदेशक, अनेकान्त शोधपीठ जैन विश्व भारती
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