Book Title: Ek aur Nilanjana
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 4
________________ का अर्थ और प्रयोजन साक्षात्कृत होता है, और जीने के लिए एक शक्ति और अवलम्ब प्राप्त होता है। उनकी अनेक उलझनें इन रचनाओं को पढ़ते हुए अनायास सुलझ जाती हैं। ‘एक और नीलांजना' के इस द्वितीय संस्करण को प्रस्तुत करते हुए, मैं अपने ऐसे सच्चे भाविक पाठकों के प्रति अपनी आत्मिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। 1 जनवरी, 1976 -बीरेन्द्र कुमार जैन

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