Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 39
________________ परिवर्तन की पुरवाई तीसरा सूत्र है – मनोमौन । मन का, वाणी का माधुर्य । सदा नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करें। अगर वाणी से किसी को सुख नहीं दे सकते तो मौन रह जाना बेहतर है । अपनी वाणी से आप कितनी हिंसा करते हैं और कष्ट पहुँचाते हैं इसका आपको अनुमान भी न होगा ! मैंने किसी व्यक्ति से पूछा, क्या आप अपनी बीमार पत्नी की सेवा करते हैं ? वह बोला, ‘हाँ करता हूँ।', मैंने पूछा, 'वह कैसे? क्योंकि आप तो अपने व्यवसाय में अत्यधिक व्यस्त दिखाई देते हैं।' वह बोला, 'मैं अपनी आँख में ललाई और वाणी में खराश नहीं आने देता। इससे अधिक और क्या सेवा हो सकती है अपने परिवार की, जिसमें क्रोध और वाणी की कर्कशता नहीं है।' इतने नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करें जैसे किसी को टेलीग्राम दे रहे हों। यह वाणी का संयम, भाषा-समिति का पालन और वचन-गुप्ति का निर्वाह हो जाएगा। जैसे चल रहे हो वैसे ही चलो, सिर्फ चलने की शैली बदलनी है। वाणी का तो उपयोग करना है, लेकिन विवेक लाना है । खाओ लेकिन जरूरत से अधिक नहीं और न ही भूखे रहो। इससे जीवन में नियमितता आएगी, परमितता आएगी। ये बहुत छोटी-छोटी बातें हैं लेकिन इन्हीं के द्वारा हम जीवन को नया रास्ता, नया मार्ग दे सकते हैं। स्वयं को नई दिशा दे सकते हैं। तुम ध्यान को जीओ। ध्यान तुम्हें स्वयं विवेक देगा। ध्यान के द्वारा मन परिवर्तित किया जा सकता है, उसे पहचाना जा सकता है। ध्यान में अपनी वृत्तियों की सजगतापूर्वक प्रेक्षा करो, विपश्यना करो। ओम् के द्वारा, प्राणयाम के द्वारा अपने भीतर की सफाई करने का प्रयास करो। मोह को ज्ञान की कैंची से काटो और लोभ को ॐ की गदा से मारकर भगाओ। अभी मन में विचार ही विचार हैं, इन्हें देखते रहो, देखते रहो, देखते रहो। यह देखना ही विचारों को शांत कर देता है । बल्ब तब तक ही जलेगा जब तक उसे करंट मिलेगा। करंट के ऑफ करते ही बल्ब शांत (बुझ) हो जाता है। तमने शरीर को सोते हए तो देखा है, पर कभी मन को सोते हए देखा है? जिस दिन मन शांत हुआ, समझो सो गया। मन का सोना और स्वयं का जगना – मुक्ति की इतनी-सी राह है। मन चलते-चलते, दौड़ते-भागते बहुत थक गया है । उसे विश्राम चाहिये । उसे सोने दिया जाये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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