Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 134
________________ १२४ इक साधे सब सधे प्रकम्पनों का अनुभव होगा । लगभग दस-पन्द्रह मिनट तक अपने सहज स्वरूप में निमग्न रहें । पंचम चरण की अन्तिम स्थिति है - जीवन की अस्तित्वगत अशांति का सम्पूर्ण समाधान, समस्त चिन्ताओं से मुक्ति और सच्चिदानन्द स्वरूप में अन्तरलीनता, अहोदशा । जब तक यह लीनता बनी रहे, तब तक डूबे रहें । सामान्य स्थिति में आने के लिए तीन गहरे साँस लें । हथेलियों को जोर से रगड़कर हल्के से आँखों पर रखें। हाथों में प्रवाहित हो रही ऊर्जा का अनुभव करें । हाथ आँखों से हटाकर धीरे-धीरे आँखें खोलें । जो भी प्राणी या व्यक्ति सर्वप्रथम सामने नजर आए उसे प्रभु-रूप मानकर मुस्कराकर प्रणाम अर्पित करें । 1 भाव - उत्सव आत्मिक आनंद में डूबकर सामूहिक रूप से सस्वर 'भाव - गीत' का पाठ करें जो मैत्री, करुणा, प्रमुदितता और समता की हम पर अमृत वृष्टि करता है 1 Jain Education International भाव - गीत : परम प्रेम की रहे प्रेरणा, हृदय हमारा रोशन हो । मैत्रीभाव के मधुर गीत से, सारी धरती मधुवन हो । खुद जिएँ सुख से, औरों को सुख पहुँचाने का प्रण हो । हंसता- खिलता हो हर चेहरा, स्वर्ग सरीखा जीवन हो || For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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