Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 48
________________ ३८ किसी भी प्राणी को क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध तो हमेशा ही जलाता है । 'फितरत को नापसंद थी तेजी जुबान में, पैदा न की इसलिए हड्डी जुबान में ।' इक साधे सब सधे उस वाणी का क्या अर्थ जो अपनी ओर से दूसरे को पीड़ा पहुँचाए । अगर कोई पूछे कि अहिंसा का स्वस्थ आचरण क्या होगा तो मैं कहूँगा अपनी वाणी के द्वारा दूसरों को माधुर्य प्रदान करना अहिंसा का स्वस्थ आचरण है ! क्रोध निश्चित ही टूटना चाहिए। जितना गहरा क्रोध है उतनी गहराई तक साधना में जाएँ । अपने क्रोध को समझें, क्रोध के कारणों को समझें । स्वीकार करें कि क्रोध आता है और उन कारणों के निवारण का प्रयास करें जिनके कारण क्रोध आता है । इसके उपरांत भी यदि क्रोध आता है तो बेहतर होगा वाणी का, होठों का मौन लेना शुरू करें। प्रारंभ में तो यह भीतर गहरी पीड़ा, गहरी प्रतिक्रियाओं को जन्म देगा, लेकिन धीरे-धीरे क्रोध नहीं आएगा । आए तो क्रोध पी जाइए। शराब से तो बेहतर ही है । क्रोध वह जहर है जिसे पीने के लिए बहुत ताकत चाहिए । अमृत हुए बिना जहर नहीं पीया जा सकता और जहर पी-पीकर ही अमृत बनता है । विष ही अमृत में रूपान्तरित होता है । पीना सीखो। किसी के क्रोध को, किसी के कटु वचन को पीना सीखो, उन्हें जीना सीखो । कहीं से तो यात्रा शुरू करनी ही होगी । इसलिए पीओ । आज अगर तुम किसी के कटु शब्द सह सकते हो तो उम्मीद की जा सकती है कि मच्छर की काट को सह जाओगे । आज मच्छर की काट सह सकते हो तो कल किसी का चाँटा भी सह जाओगे। आज अगर एक चांटा सह सकते हो तो उम्मीद की जा सकती है अगर तुम पर लाठी बरसे तो तुम कह सकते हो यह संयोग था । जैसे पेड़ के नीचे से निकले और टहनी गिर गई यह सांयोगिक था वैसे ही लाठी का गिरना भी सांयोगिक हो जाएगा। जैसे टहनी के गिरने पर पेड़ को कुछ नहीं करते-कहते, वैसे ही लाठी पड़ने पर भी मौन-भाव रहेगा। आज लाठी सह पाए तो उम्मीद है कि कभी क्रॉस पर भी लटक सकते हो। उम्मीद की जा सकती है कि आप कभी कानों में कीलें भी ठुकवा सकते हैं। उम्मीद की जा सकती है कि फिर से नया जीसस, नया महावीर, नया बुद्ध, नया सुकरात पैदा हो सकता है । पीना है क्रोध को पीओ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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