Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 124
________________ ११४ इक साधे सब सधे प्रात:कालीन ध्यान से पूर्व की जाती है । विधि : सूर्य अथवा अपने इष्ट की ओर मुँह करके 'नमस्कार-मुद्रा' में खड़े हो जाएँ । हृदय में पूर्ण समर्पण-भाव जाग्रत करते हुए ज्योति-स्वरूप परमात्मा को प्रणाम करें और अग्रलिखित मन्त्र तीन बार उच्चारित करें - तमसो मा ज्योतिर्गमय। असतो मा सद्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय ।* तत्पश्चात् योगचक्र की एक-एक मुद्रा सम्पादित करें। पहली मुद्रा : हस्त-उत्तान आसन साँस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएँ । भुजाएँ कान से लगी हुई हों । जितना हो सके, हाथ और सिर को पीछे की ओर झुकाएँ। दूसरी मुद्रा : पादहस्तासन साँस छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें। हाथ को पैरों के पास जमीन पर रखने का प्रयास करें। सिर को घुटनों से लगाएँ । घुटनों को सीधा रखें, घुटने मुड़ने न पाएँ । ध्यान रखें जितना झुक सकें, उतना ही झुकें, जबरदस्ती न करें। तीसरी मुद्रा : अश्व-संचालन-आसन हाथों को जमीन पर ही रखें । साँस भरते हुए दायें पैर को पीछे की ओर ले जाएँ और घुटनों को जमीन का आधार दें। बायें पाँव की जंघा को पिंडली से जोड़ें । बायाँ पाँव दोनों हथेलियों के बीच हो । दृष्टि ऊपर की ओर हो । बैठक को नीचे की ओर दबाव दें। * भावार्थ : हे प्रभु,ले चलो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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