Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 130
________________ १२० इक साधे सब सधे ४ - अन्तर्मन्थन ५ - चैतन्य-बोध ३ मिनट १० मिनट सर्वप्रथम ध्यान के लिए सुविधाजनक आसन (बैठने की मुद्रा) का चयन करें, जिसमें हम लगभग ४५ मिनट स्थिरता से सुखपूर्वक बैठ सकते हों। पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन ध्यान के लिए उपयुक्त हैं। सिद्धासन विशेष अनुकूल रहता है । खड़े होकर भी ध्यान किया जा सकता है। जिन्हें तंद्रा अधिक सताती हो, उन्हें खड़े होकर ही ध्यान करना चाहिए। अस्वस्थता आदि अपरिहार्य स्थितियों में लेटकर भी ध्यान किया जा सकता है, पर इसे आदत नहीं बनाना चाहिए। उपयुक्त आसन का चुनाव कर सहज स्थिर बैठें। पूरे शरीर का मानसिक निरीक्षण कर यह जांचें कि शरीर के किसी भाग में तनाव या जकड़न शेष है? मानसिक निर्देश से उस अंग के तनाव को शिथिल करें। आंतरिक प्रसन्नता को खिलने दें । नेत्र बन्द करें । अंतरदृष्टि से गुरुदर्शन करते हुए ध्यान का संकल्प लें और चैतन्य-ध्यान में प्रवेश करें। किसी भी कार्य में प्रवृत्त होने से पूर्व संकल्प पूर्व-भूमिका का काम करता है । संकल्प हमें लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है । इसके लिए जरूरी है कि संकल्प दृढ़ हो, संकल्प का सदा स्मरण रहे, एवं संकल्प को क्रियान्वित करें। यह संकल्प वास्तव में ध्यान की दीक्षा है । सद्गुरु के चरणों में बैठकर दीक्षित होने के पश्चात् ध्यानमार्ग में प्रवृत्त हुआ जाता है, क्योंकि यही गुरु और साधक के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। 'शरण-सूत्र' बोलकर उपसंपदा स्वीकार करें - शरण-सूत्र अरिहंते सरणं पवज्जामि। सिद्धे सरणं पवज्जामि। साहू सरणं पवज्जामि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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