Book Title: Ek Sadhe Sab Sadhe
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 74
________________ ६४ इक साधे सब सधे मन को साधने की बात नहीं कहूँगा, मन को तो विसर्जित करना है। हमें हृदय से जीना है । हृदय से जीकर ही जीवन का आनन्द लिया जा सकता है। हर क्षण आनन्द में रह सकते हो । हृदय की आँख से केवल इन्सान में ही प्रभु की मूरत दिखाई नहीं देती, बल्कि पेड़-पौधों, फल-पत्तों, नदी-झरनों में भी उसी प्रभु की मूरत दिखाई देती है। तब वेद के मंत्र ही मंत्र नहीं होते, वरन् चिड़िया की चहचहाट में भी वेदों के मंत्र, वेदों की ऋचाएँ साफ-साफ सुनाई देती हैं। प्रकृति से प्रेम करके देखो तब यह प्रश्न ही न उठेगा कि परमात्मा है या नहीं, क्योंकि वही सब ओर है। कभी यह तर्क नहीं जगेगा कि आने वाले कल में क्या होगा क्योंकि वह सब व्यवस्था कर रहा है। हृदयवान होकर ही कुछ कर सकते हो । प्रेम और करुणा को जी सकते हो । हृदय ही प्रेम और करुणा का सागर है । हृदय ही प्रेम और करुणा का आधार है। हृदय के होने पर ही प्रेम, करुणा और शांति है। बाहर की आँखें कुछ भी देखती रहें, पर हृदय की आँख ही आँख है। महावीर ने संदेश दिया था सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ही मोक्ष-मार्ग है । सम्यक् दर्शन का अर्थ है हृदय की आँख से देखना। हृदय की आँख के बिना पूरा-पूरा और सही नहीं देख पाओगे। अगर मुझे हृदय की आँख से देखो तो ही जान पाओगे कि मैं क्या हैं। अगर बद्धि और तर्क की आँखों से मुझे देखोगे तो मेरे प्रति स्वयं तुम्हारे सौ संदेह खड़े हो जाएंगे। सम्राट के दरबार में मजनूं के लिए शिकायतें पहुँची कि वह लैला के लिए दीवाना हो रहा है । सम्राट ने समाधान निकाला और नगर भर की दर्जनों सुन्दरियाँ उसके सामने लाकर खड़ी कर दी और कहा 'अपनी लैला इनमें से ढूँढ लो।' मजनूं ने हरेक पर अपनी दृष्टि डाली, एक से बढ़कर एक रूपसी। सबको देखने के बाद बोला, 'इसमें मेरी लैला नहीं है।' कहते हैं लैला बहुत सुन्दर नहीं थी। राजा ने कहा 'यहाँ तेरी लैला से भी अधिक रूपवान स्त्रियाँ हैं और तू कहता है तेरी लैला नहीं है।' मजनूं मुस्कराया, बोला, 'ये सभी सुन्दर तो बहुत हैं, पर इनमें मेरी लैला नहीं है । लैला को देखने के लिए तो मजनूं की आँख चाहिए।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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