Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06 Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 4
________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ उनके नाम वह ग्रंथ लिखकर देने चाहिये । समान सुधारके लिये अवश्य आगे आयेंगे । इस दिनको जाहिर त्यौहार रूपसे पवित्र मानना स्वागत सभापति बा. बलवीरचन्द्र जैन वकीचाहिये तथा शामको बड़ी भारी सभा करके लका व्याख्यान भी धर्म व जातिप्रेमसे भरा हुआ सबको इस पर्वका महात्म्य सुनाना चाहिये व था। भाप भी बड़े उत्साही व धर्मप्रेमी हैं। जैन साहित्यकी रक्षा व उसके प्रचारके प्रबन्ध यह आपके ही साहसका फच था कि परिषदका की चर्चा होकर कुछ न कुछ जैन साहित्यकी अधिवेशन मुजफ्फरनगरमें होसका था। अधिवे. सेवाकी योजना करनी चाहिये तथा जो २ ग्रंथ शनों तो सभाओंके अनेक होगए हैं परन्तु इस .अपने मंदिरों में न हों वे अपने मूल्यसे नहीं वार भारत० दि. जैन परिषद में जिस उत्तमताके तो मंदिरोंके भण्डारोंके द्रव्यसे भी इसी दिन साथ कार्रवाई हुई थी वह दूसरे अधिबेशनोंमें मंगानेका प्रबन्ध करना चाहिये । मुद्रित सभी शायद ही कहीं हुई हो । अर्थात् परिषदमें मात्र दि. जैन ग्रन्थ का सुचीपत्र हमारे पास है जो अंग्रेजी पढ़े लिखे नहीं परन्तु कई पंडितगण, कार्ड लिखनेपर मुफ्त भेज देंगे। ब. भागीरथजी,ब० गणेशप्रसादनी, ब• सीतभागामी श्रुतपंचमी पर्व गत वर्षोंकी अपेक्षा प्रसादनी जैसे त्यागीगण तथा भनेक श्रीमान विशेष रूपसे हरएक स्थानपर मनाया जाय यही व अंगरेजी पढ़े लिखे बड़े २ विद्वान तथा हमारे 'हमारी भावना व अभिलाषा है । तथा इसके पुराने विचार के कई अगुए भी उपस्थित हुए थे। समाचार भी हमें मिलने पर अवश्य प्रकट किये परिषदमें जिस योग्यतासे साहुनीने काम लिया जांयगे। वह अतीव भादरणीय है । जितने भी प्रस्ताव हुए हैं प्रायः उन सब पर विरोध, संशोधन मुजफ्फरनगरमें वेदीप्रतिष्ठा, महिला परिषद व आदि हुआ था परन्तु अंतमें सभापतिमी इस भारतवर्षीय दि० जैन प. तरह इसका निकाल कर देते थे कि जिससे मुजफ्फरनगरमें रिषद्का प्रथम अधिवेशन किसी भी प्रस्ताव पर मत ही लेने की आवश्यपरिषद । चैत्र मासमें अतीव सफ पता नहीं पड़ती थी और सब प्रस्ताव सर्वानु लता पूर्वक हो गया। मतसे ही पास होजाते थे। परिषदमें कुलं १६ सभापतिका स्थान श्रीमान् साहु जुगमंदिरदासनी प्रस्ताव हुए हैं जो भागे मुद्रित हैं वे पढ़नेसे नजीबाबादने ग्रहण किया था। आपका व्या- हमारे पाठकोंको मालूम होगा कि इसवार ऐसे ख्यान भन्यत्र मुद्रित है जो अक्षरशः पढ़ने योग्य कई प्रस्ताव भी हुए हैं जो बिलकुल नवीन हैं, है। मापने समाजके समक्ष निर्भीकतासे जैन व जैन समानमें जाग्रति व सुधार करनेवाले हैं समानकी सच्ची हालत रख दी है। हम समझते इसलिये उन पर हम यहां कुछ आवश्यक निवे. हैं मापके इस व्याख्यानसे दि. जैन समाजमें दन करना चाहते हैं। नवचेतन अवश्य आवेगा व उत्साही युवकगण दूसरा प्रस्ताव ऐसा है कि हरएक जैन स्कूलPage Navigation
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