Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 21
________________ [१९ wwwwwww अंक ५ ] दिगम्बर जैन । चाहिये। यह तो सम्भव नहीं कि हरएक विषयके स्कालर्शिप फण्ड खोला जाय जिसको जैन विद्यालय खोले नासकें। न तो इतना धन ही धनी महानुभाव अपनी चंचला लक्ष्मीको मचल समाज व्यय करनेको तैयार है और न वे विद्यालय और सार्थक करने के लिये धनसे भरपूर करके इस स्टैण्डर्ड के ही हो सकते हैं कि जो अन्य धर्मकी सच्ची प्रभावना करें और फिर दश वर्ष बाद राष्ट्रीय एवं सरकारी विद्यालयोंकी प्रतियोगता देखें कि समानकी दशा क्यासे क्या होती है। कर सकें । जैन जाति भारतके समस्त प्रांतों में निम्नलिखित नियमानुसार स्कालशिप दिये जा विभक्त है । यदि एक दो कालेज खोल भी सकते हैं। दिये नावें तो यह सम्भव नहीं हो सकता कि (क) विना किसी अपेक्षाके सहायता रूपमें। समस्त पान्तोंके विद्यार्थी उस कालेजसे लाभ (ख) ऋणरूपमें-शिक्षाके पश्चात समर्थ होनेउठा सके। समाजमें बहुतसे तो ऐसे निधन पर वापिस लेलिया जावे। व्यक्ति हैं कि जो धनाभावके कारण अपने बा- (ग) निस छात्रको स्कालर्शिप दिया जाय लकोंको उच्च शिक्षा नहीं दे सकते । और कुछ उससे एक ऐसा प्रतिज्ञापत्र लिखवा लिया जावे, महाशय समर्थ होते हुये भी शिक्षाका मूल्य न कि वह समर्थ होनेपर न्यूनसे न्यून एक छात्रको समझते हुये अपनी सन्तानको उच्च शिक्षासे उतनी ही स्कालशिप अवश्य दे। बंचित रखते हैं । इधर शिक्षाका मूल्य इतना ७-बालकोंकी शिक्षाके साथ . आपको बढ़ गया है कि साधारण परिस्थितिके मनुष्य बालिकाओंकी शिक्षाकी ओर भी पूर्ण ध्यान अपनी सन्तानको शिक्षित बनाने में असमर्थ हैं। देना पड़ेगा । स्त्री पुरुषकी अर्धागनी है यदि हमारी समाजमें बहुतसे ऐसे योग्य कुशाग्र कोई व्यक्ति अपने आधे अंगको तो पुष्ट करता बुद्धि छात्र विद्यमान हैं जिनको आप भी देख चला जाय ओर अधेकी ओर ध्यान न दे और रहे हैं कि पढ़ना चाहते हैं किन्तु धनाभावके फिर चाहे कि मैं बलवान् होनाऊं तो यह कारण अपनी शिक्षाको जारी नहीं रख सकते कदापि सम्भव नहीं है । इसी भांत जबतक और अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति में असमर्थ स्त्री पुरुष-युगलकी शिक्षाका योग्य प्रबन्ध न हो हताश होरहे हैं। होगा, तबतक उनकी संतारयात्रा सुख पूर्वक इस कमीकी पूर्तिका सरल उपाय यही है कि व्यतीत नहीं होती। उनको भी यथाभो असमर्थ होनहार विद्यार्थी चाहे किसी भी सम्भव उच्च कोटि की धार्मिक तथा लौ केक शिक्षा प्रोतका हो, और चाहे वह संस्कृत, अंग्रेजी, दी जानी चाहिये । निससे कि वे गृह सम्बन्धी शिरुपविज्ञान, कृषि, वैद्यक, गणित, कलाकौशल समस्त कार्यों की योग्य रीतिसे व्यवस्था करने में मादि जिस किसी विषयको देशमें या विदेशमें समर्थ हो सकें। उन्हें कमसे कम पाकविद्या पढ़ना चाहता हो, उसको कुछ नियमोंके साथ सीवनकला, वाक चिकित्सा, गृह प्रबन्ध और स्वालक्षिपदी जाय । इस कार्य के लिये एक देश स्थिति जानने आदिके लिये दूसरोंका मुह

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