Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 30
________________ AAMAAN aanwar २८] दिगम्बर जैन । ... वर्ष १७ परस्पर रिश्ते होने के लिए उत्तेजना दी जाय। न करें। प्रस्तावक-ज्योतिप्रसादजी देवबंद प्रस्तावक-लाला नेमीशरणनी जैन वकील बिजनौर समर्थक-मित्रसेनजी रईस खतौली समर्थक-व्र० भागीरथजी वर्णी , विश्वंभरदासजी गार्गीय झांसी , ब्र गणेशप्रसाद नी वर्णी , सेठ फूलचंद नी खुनो , सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया -सुरत प्र. नं. ५-नैन समाजकी संख्याके वेगके प्रस्ताव नं. ७-जैन इतिहासकी अत्यन्त साथ हासको यह परिषद् चिंता व भयकी दृष्टिसे आवश्यकता समझकर यह परिषद प्रस्ताव करती देखती है और प्रस्ताव करती है कि निम्न है कि जैन इतिहास तैयार करनेके हेतु इतिहास लिखित सज्जनोंकी कमेटी बनाई माय, जो जैन विभाग स्थापित हो, निसके मंत्री व बू हीरालासमाजकी सेख्याके ह्रासका अनुसंधान करें, और सनी एम० ए० हों। वे स्वयं तथा बा• मुनिछह मासके अंदर रिपोर्ट प्रकाशित करे, मिससे सुबतदाताजी मेरठ व बा• कामताप्रसादजी तथा हासके कारण व उसके रोकने के उपाय बतकावें। अन्य विद्वानोंसे सहायता लेकर तैयार करें। मंत्रीको अधिकार दिया भावे कि इसमें और प्रस्तावक-बा० कामताप्रसादनी अलीगंज नाम शामिल करलें। समर्थक-बाबू नेमीशरण नी वकील बिननौर श्रीयुक्त काला रतनलालजी बिमनोर मंत्री भनुमोदक-ब. शीतलप्रसादजी , ज्योतिप्रसादनी देवबंद प्रस्ताव नं. ८-जैन धर्मके प्रचारका जो काम , का. चेतनदासनी मथुरा प्राचीन श्रावकोहारिणी सभा कळकत्ता तथा -, ब्र. शीतकप्रसादमी महिक्षेत्र तीर्थ प्रबन्धकारिणी सभा कर रही है , साहु जुगमेवरातमी ममीवाबाद उसकी यह परिषद सराहना करती हुई प्रस्ताव , पं. बाबूरामजी भागरा करती है कि यह परिषद धर्मप्रचारके हेतु एक , प्र. गणेशप्रसावजी वर्णी उपदेशक विभाग खोले जिसके द्वारा अवैतनिक R०-का. रतनलालमी वकील बिजनोर और वैतनिक विद्वानोंसे उपदेश कराया जाय । समर्थक-सेठ मुलचंद किसनदास कापड़िया तथा इसके मंत्री मास्टर चेतनदासजी मथुरा , ब्र• गणेशप्रसादजी वी नियत किये जाय । प्रस्ताव नं० ६-यह परिषद प्रस्ताव करती प्रस्तावक -सेठ मूलचंद किसनदाप्त कापड़िया है कि जैन मंदिरोंमें धोसी, दुपट्टे, कपड़े, वेष्टन समर्थक-बाबू जुगलकिशोरजी मुखत्यार भादि स्वदेशी शुद्ध सुती वस्त्रोंके ही प्रयोगमें अनुमोदक-बा• रतनलालजी बिननौर लाये नार्वे । और चंोवे माबि रेशम व अशुद्ध , बा० मिट्ठनलाकनी शामली सुसी बस्त्रके न चढ़ाये जायें। और जनतासे , ब. शीतलप्रसादजी मार्थना करती है कि वह ऐसे वस्त्रों का व्यवहार प्रस्ताव नं. ९-दिगम्बर श्वेता बरियों में ती.

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