Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ PA अंक ५ ] दिगम्बर जैन । - अतएव जब विदेशी औषधियोंमें मांसका चन्द्रमाकी ज्योत्स्नाकी तरह प्रकटित होगा। संसर्ग सिद्ध हुआ तब कौनसा ऐसा भारतवासी बस अन्तमें यह तुच्छ लेखक पाठकोंसे क्षमा होगा जो ऐसा जानकर भी मद्य मांस मिश्रित मागता हुमा प्रार्थना करता है कि आप लोग विदेशी औषधी सेवन करेगा, क्योंकि यह धर्म लेखकी त्रुटियोंपर ध्यान न देते हुए लेख गत प्रधान भारतवर्ष है, जहांके हम रहनेवाले हैं भावको गृहण करेंगे । और आयुर्वंदकी उन्नहम कभी भी धर्मका परित्याग नहीं कर सक्ते, तिमें दत्तचित्त होंगे। पाठकोंका-सेवकचाहे धर्मके लिये यह प्राण भी चले जायें किंतु मायुर्वेद भूषण सत्यन्धर जैन वत्सल काव्यतीर्थ । धर्म नहीं छोड सक्त। -- -- ___ अतएव प्यारे पाठको ? आजसे इस बातकी प्रतिज्ञा ले लो कि हम विदेशी बस्तुओं का सेवन नहीं करेंगे किन्तु शरीरको निरोग रखने के लिये संयम पूर्वक रहकर परमितभोगी होते हुए चन्द्रपभु चरणों शीश नवावें (टेक ) ॥ धर्मका परिपालन करते हुए स्वदेशी औषधि- चन्द्रपभु निरखकर तुमको चरो शिश नमावें । योंका ही सेवन करेंगे। चन्द्रच्छटा देखकर मन में अतुक शान्तिता पावें। प्रिय पाठको ! जब हमारी प्रना स्वदेशी (चन्द्रप्रभु चरणों शीश०) औषधियोंकी तरफ झुक जायगी तब हमारे वैद्यों । " तब हमार वया है वह चन्द्र कलंकी विभुनर निःकलंक तुम पावें ॥ और हकीमों तथा विशेषकर डाक्टर महोदयों का " वह अमृतहि अगदेको दाता आपसे स्वर्गमोक्षको पावें॥ क्या कर्तव्य होगा ? सो भी सुनिये। __ मेरे पूज्य वैद्यरानो तथा मानवर्य्य हकीम "चन्द्रपभु चरणों शीश०" महोदयों! तथा डीयर डाक्टर महोदयों ! अब वह चन्दा कोरा ही चंदा रविकर श्वेत दिखावे । भाप लोग स्वदेशी औषधिओं का प्रचार करने में अनुपम ज्योति अनोखी आपकी अतुल शांति वरसावै॥ तत्पर हो जाइये क्योंकि समस्त भारतवर्षीय "चन्द्रप्रभु चरणों शीश." ॥ प्रजा अब आपके ही आधीन है अतः आप सेवक दुःखकर पूरि रहो है किंचित शांति न पावै । लोगोंका कर्तव्य है कि शुद्ध भावसे स्वदेशी शीघ्र कृपा अब करी प्रभुनी सोषसांग मिल जावै॥ औषधियोंका प्रचार करें और विद्यार्थियों को ___"चन्द्रप्रभु चरणों शीश०" ।। मायुर्वेद पढ़ावें तथा सर्नरीके साथ डाक्टरी भी विनीतसिखावें । जिससे प्राचीन भायुर्वेदकी उन्नति जैन पाठशाला मुन्नालाल विशारद, होकर भारतवर्षके प्रत्येक घर २ मायुर्वेद , शास्त्रानुसार स्वदेशी औषधियोंकी उन्नति स्या. शांतिनिकेतन । दमोह सी० पी० । हो। तभी माप लोगोंका मुयश जगतमें भौषधिको भमतदाता है।

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