Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 10
________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ यंत्रके लिए खुलामा- हमारी सुचना- वरे नियत कर रक्खे हैं परन्तु वह महाशय नुसार उपयोगी यंत्र मंगानेको भनेक पत्र ॥ वरेके दिवस भी बहुत ही कम आते हैं । की टिकिट सहित गुजगती मराठी भाषाके लिखे (२) बहुधा मंदिरों में प्रक्षालके करने में भी हये हमारे पास माये हैं जो कि यहांपर पढ़े नितना समय लगाना चाहिए उससे कम समनहीं गये । हमारा सर्व भाइयों से निवेदन है यमें की जाती है। यह स्पष्ट प्रगट है कि कि ये सभी यंत्र विधि पूर्वक ताम्बेमें मढ़े गये जितनी जियादा प्रतिबिम्ब किसी वेदीमें विराहैं । मिस भाईको निम यंत्रकी आवश्यक्ता हो जमान होंगी उतना ही अधिक समय उनकी खुलासा लिखे कि कौनसा यंत्र भेना जावे। प्रक्षालमें लगेगा। एक यंत्रका पैकिंग आदि डेढ़ आना ॥ खर्च रहता है । डाक खर्च न्यारा है । मो भाई ___ (३) बहुधा स्थानोंपर जैनियोंकी बहु संख्या अधिक यंत्र मंगाना चाहैं वे रजिस्टरी खर्च होते हुए भी पूनन प्रक्षालके लिए पंडित नौकर और पैकिंग खर्चके टिकट भेनकर अपना पता रखे जाते हैं। जिन अरहंत देवके दर्शन और पूजन करनेकी स्वर्ग लोकके इन्द्र भी अभिलाषा पोष्ट मिला आदि इसी नागरी भाषामें खुलासा करते हैं उनकी पूजन और प्रक्षाल नौरोसे लिखें । हमने परोपकार अर्थ और मिथ्यात्व हटाने अर्थ बड़े परिश्रमसे ये यंत्र तैयार किये हैं। कराना और माप न करना अत्यंत अनुचित पं. नियालाल जैन-पानीपत ( करनाल ) . वात है। प्रतिष्ठाओंकी भरमार-आनकल बिम्ब (४) जो सामग्री दर्शन और पूजन करते प्रतिष्ठाओं और पूनाओंकी पहिलेसे अधिक समय चलाई जा चुकी है (बजाए इसके कि चर्चा मालुम होती है और उनमें भाइयों का वह उस सामनोका हवन किया जावे या उसको संख्या में एकत्र होना हर्षकी बात है मगर उस के तालाब में डालदिया जावे या किप्ती अलहदी साथ यह निहायत आवश्यक और उपयोगी जगह पर ड ल दिया जावे) वह सामग्री मंदिरके है कि मंदिरोंकी से बाके लिए जो हमारे कर्तव्य व्यासों को वेतनके रूपमें दी जाती है क्योंकि हैं उनसे हम बेखवर न रहे। अगरचे सब मिस अल्प वेतनपर व्याप्तलोग मंदिरों में नौकर जगह ऐसा नहीं होता तोभी भारतवर्ष में रक्खे जाते हैं यदि उनको यह सामग्री न दी बहुतसी जगह पर पूजनपक्षाल आदि सेवाके जावे तो वह इस वेतनपर नौकरी करना कदा. सम्बंध में कुछ उत्साह कम होता जाता है जिसके चित् स्वीकार न करेग! कुछ कारण नीचे लिखे जाते हैं-- __मेरी यह प्रार्थना है कि जैनधर्मके प्रेमी (१) इपवक्त भारतवर्ष में बहुतसे ऐसे जैन महानुभाव मंदिरों की सेवामें जहां इस प्रकारकी मंदिर मिलेगें जिनमें पूजन नियम पूर्वक नित्य त्रुटियां पावें उनको दूर करनेका पूर्ण प्रकारसे नहीं होती। बहुतसी जगहपर लोगोंने पूननके यत्न करें। इन्द्रलाल-देहली।

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