Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 19
________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwnwar अंक दिगम्बर जैन । भारतवर्षम ही नहीं वरन् संसारभरमें फैल रहा नो बुद्धिको तीन कर सकते हैं और न उनसे है।मान जैनधर्मको समझने के लिये संमारके पेट ही भरा जा सकता है और न उनकी संसाबड़े बड़े बुद्धिमान प्रस्तुत हुये हैं। अर्मनी, में मांग ही है। परन्तु पदार्थ ज्ञानसे सीनों फ्रान्स के विद्वान् उसकी पुस्तकों का अध्ययन बातें हासिक होती हैं। यदि कोई मनुष्य धर्मसे करते हैं। लन्दनमें एक " महावीर बिरादर भटककर कुमार्गपर पहुंच जाता है तो ग्रह हुड" नामी संस्था कायम है। हिन्दी, गुजराती, किसी खास विक्षणका दोष नहीं हो सका है। माहठी, अंगरेजी और संस्कृत भाषामें भी किसी काभदायक शिक्षण को सर्वथा बुरा कहा बहुबसे अन्य जैनधर्मके तत्वोंको दर्शाने के लिये कर त्याग देना उचित नहीं है। हां, यदि मौजूद हैं। इस २० बर्षके भीतर अंगरेजी उसमें कोई त्रुटियां मार पड़ें तो तुमको चाहिये शिक्षणने छाफेके विरोधी हठको पीरे धीरे तोड़- कि उनको दूर करो या मी कमी हो उसको कर जैनधर्मका प्रभाव समस्त संसारमें फैला पूरा करी, परन्तु यदि इतनी योग्यता वहीं रखते दिया है, इस बीचमें ब्याह-सम्बन्धी कुरीति- हो कि उसकी भलाई या बुराई को समझ सको योंका सुधार भी बहुत कुछ हुमा है। बाल- तो जो मनुष्य उससे जानकारी रखता हो उससे विवाहकी कुरीति भी कुछ कम होगई है और उचित कार्य करने को कहो,परंतु विनासमझे बुझे राय भाशा है कि थोडे ही समयमें यह अपवित्र प्रकट करके दूसरोंके काममें बाधक मत बनो । प्रणाकी इस देश में प्रचलित न रहेगी। मैन वास्तवमें इस समय इस बातकी भावश्यक्ता कानूनके सुधारका प्रबन्ध होरहा है। संगठन है कि इलाहाबाद जैन होस्टल जैसी संस्थाओं मौर प्रबन्धके खयालत भी अब समागके दिलमें (Instituions) की सहायता की जाय और उत्पम हो गये हैं। क्या यह अंगरेमी शिक्षणकी इस प्रकारके छात्रालय अन्य स्थानों में भी खोले कारगुजारी यथेष्ट नहीं है ? क्या सहस्रों वर्षों की जावें । एक जैन कोलिन लखनऊ, इलाहाबाद, चली आई हुई अवनतिको रोकना और उसमेंसे कानपुर या बनारस जैसे स्थानपर होना आव. त्रुटियों को दूर करना कोई चीज ही नहीं है। श्यकीय है। चाहिये तो एक जैन विश्वविद्याऔर मुख्यतः सख्त विरुद्धताके प्रतिकूल जैसे कय भी जहां कि संस्कृत व अंगरेजी भाषाओंकी शास्त्रोंक छापनेके विषयमें ? यथेष्ट शिक्षा साथ साथ दी जा सके उसका अतः हम देखते हैं कि अंगरेजी शिक्षाका प्रबन्ध अब हमारे हाथों में होगा तो हम वहांके प्रभाव हानिकारक नहीं वरम मुणकारी है। विद्यार्थियों के जीवन बबारित्रको यथोचित बना सत्य यह है कि विद्या हर दशामें लाभदायक हो सकेंगे। नया मापने नहीं सुना कि शान्तिकिहोती है और विद्याओं में काव्य और अलङ्कारोंके केतनके विश्वभारती में अन्य देशों के विद्वान मुकाबिलेमें सत्य पदार्थ-ज्ञान विशेषकर लाभ- भाकर काम करते हैं और विद्योपान करते दायक होता है क्योंकि काव्य और शङ्कार हैं। यदि मा विशनिवालय कहीं होता तो

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