________________
अंक ५]
दिगम्बर जैन । अशुद्धताकी भो यही दशा है। इनका प्रयोग नमें एक प्रकारका बनावटी चमड़ा किसी वृक्षकी पूर्णतया बन्द कराने का एक ही उपाय है और छालसे बनाया गया है जो वास्तविक चमड़ेका वह यह है कि पहिले शुद्ध मिठाई व घोकी पूरा काम देता है । यदि हमारे देशमें भी कलादुकानें खुलवा दी जायं जहां वह सस्ती बिके कौशलमें उन्नति करना धर्मके रक्षकोंने बुरा न तत्पश्चात् उपदेश दिया जाय वरना उपदेश समझा होता तो शायद इस प्रकारकी कोई चीन बहुधा निष्फल होगा। परंतु उपदेश देना तो अवश्य प्राप्त हो जाती जो वृक्षोंके बक्कल मादिसे सहल है मगर मिठाईकी दुकान खोलना कठिन बनाई जा सकती। फिर देखते कि अहिंसा है। फिर वह भी बिना नफेके कौन खोले और परमो धर्मःका प्रचार कैसी उत्तमताके साथ होता। खुलावे । हमको चाहिये कि प्रत्येक स्थानों पर केवल उपदेश अधिकांशमें निरर्थक है । और एक या अधिक दुकानें घी और मिठाईकी इस प्रकारके हटसे भी कभी प्रभावना नहीं समाजके चन्देसे खुलवा दें।
बढ़ेगी जैसे कभी कभी समाचारपत्रोंमें लेख . चमड़ेके प्रयोगकी भी यही दशा है । बहुधा निकलते हैं कि दूधमें भी हिंसा होती है । महानुभावोंको टोपियों पर खख्त एतरान होता क्या इसका प्रयोग नैनीके लिये उचित है ? है क्योंकि उनमें भीतर चमड़ा लगा होता है। रेशमने भी उपदेशकोंके दांत खट्टे कर दिये हैं । मैं उनका यहां पर वर्णन नहीं करता हूं जो धर्म उपदेशककी अपेक्षा इस कार्य में पुलिटिकल टोपीके नाम पर ही चिढ़ जाते हैं। उनसे उपदेशकको अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वार्तालाप करना निरर्थक है मगर जो महोदय बात यह है कि रेशमका प्रयोग एक प्रकारका चमड़ेके कारण टोपीके विरोध में वे यदि टोपीको प्रचलित फैशन है जिसका सर्वथा बन्द होना छोड़कर केवल चमड़ेका । - विरोध करें तो असम्भव है । इप्तलिये हिंसामयीके स्थानपर अनुमानतः ये अपने उपद में शीघ्र और. यदि दूसरे प्रकारका रेशम जिसमें कीड़े तीतरी अधिक सफलता प्राप्त करते हुये पायेंगे। बनकर पहिले निकल जाते हैं प्रचलित किया कारण कि टोपोमें कोई व्यक्ति धर्मविरुद्ध- जाता और उसके प्रयोगपर जोर दिया जाता ताके चिन्ह कभी नहीं दिखा सकेगा वरन् और उसीके बेचनेकी दूकानदारोंसे मुख्य रूपमें चमड़ेका सर पर पहुँचना अनिष्ट है ही। प्रेरणा की जाती तो अधिक उपयोगी होता । इस अनिष्टताके दूर करनेमें लोगों को थोड़ा यदि कोई व्यक्ति इसको सर्वथा छोड़ना चाहे कष्ट उठाना अस्वीकृत न होगा बलिक तो फिर कहना ही क्या है । वह पूरे धन्यवामनुष्य धर्मके नाम पर हर्ष सहित स्वीकार कर दका पात्र होगा । इस प्रकार हम देखते हैं कि लेंगे । सबसे सहल उपाय यह है कि कारखा- बहुतसे हिंसामय कार्य हमको सांसारिक विद्या नेवालोंसे ऐसी टोपिया बनवाई जावें जिनमें तथा कलाकौशलकी अनभिज्ञताके कारण करने चमड़की पट्टो न हो । सुना गया है कि जापा- पड़ते हैं। पिछले सहस्र वर्षमें हमको मानना