Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 25
________________ AAN मंक ५] दिगम्बर जैन । बैलको तथा पीले चन्दनसे चर्चित सफेद घोड़ेके दर्शन करे । उस स्त्र को मनको सान्त्वना देने सचा सुख। वाले वचनोंके द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए । पुरुषको भी ऐसा ही माचरण करना चाहिए। हाय ! हम अनादि कालसे भूले हुए संसा. एवं जिन पुरुष और स्त्रियोंकी सौम्य प्रकृति, रकी चतुर्गतियोंमें भ्रमण करते हुए भटक रहे सौम्य शरीर और सुन्दर उपचार और सदुद्योग हैं, और अनेकानेक कष्टोंका साम्हनाकर, हों उनके एवं इंद्रियोंको तृप्त करनेवाले अन्या- अपनी आत्मशक्तिको खो बैठे हैं। हम जो न्य उत्तम पदार्थोके उसको दर्शन कराने चाहिए। चाहते हैं वह हमें प्राप्त नहीं होता। हमारी उस स्त्रीकी सखी सहेलियोंको चाहिए कि वे तीव्र इच्छा है कि हम सुखी बने, और दुःखसे उसको प्रिय और हितकर पदार्थों के द्वारा सदैव सदैव बचते रहें। प्रसन्न रक्खें। ___ संसारका कोई भी क्षेत्र ऐसा न होगा, जहां " इत्यनेन विधिना सप्तरात्रं स्थित्वेति ।" पर हमने जन्म लेकर सुखकी इच्छा न की ___ अर्थात् इस प्रकार सात रात्रि व्यतीत हो हो, किंतु हम जहां गये वहां ही सुखसे वंचित - जानेपर पाठवें दिन स्त्री प्रातःकाल पतिके साथ रहे । क्या नरक गति, क्या पशु गति, और शिरसे स्नान करके नवीन और पवित्र वस्त्रोंको क्या देवगति, कहीं भी हमको सच्चा सुख प्राप्त धारण करे एवं सुंदर पुष्पमाला और अलंकारोंके नहीं हुभा। अब किसी पूर्वोपार्जित पुण्यके द्वारा शरीरको सुशोभित करे । द्वारा हमें मनुष्य गतिकी प्राप्त हुई है, किंतु इन सब क्रियाओंके पश्चात् महर्षियोंने स्त्री उसमें भी सुखके चिह्न दीख नहीं पड़ते । यह पुरुषको विविध प्रकारके धर्मानुष्ठान अर्थात् क्या है ? यह सब मिथ्या कल्पना है । इसका जप, तप, हवन, यज्ञादि करनेका उपदेश दिया कारण यह है कि यदि निश्चित रूपसे देखा है। इसी प्रकार अन्य मार्य महर्षि भी स्त्री पुरु जाय तो हमारे भीतर ही हमारा सच्चा सुख षको सहवाप्त करनेसे पहले ईश्वराराधना और गर्मित है. परन्तु हम रागद्वेष मोहादिके जाल में परमात्मचिंतन करने का आदेश देगये हैं । सह. फंस, उसे भूलरहे हैं। यदि हम रागद्वेषादिके वासके पूर्व यदि शारीरिक और मानसिक अव फंदेको तोड़ अपने भापमें निमग्न हो जावें, तो स्था उत्तम हो और उस समय परमात्म-चिंत. अवश्य ही हम अपने सच्चे सुखके भोक्ता बन जाव। "वन किया जाय तो सम्पूर्ण विषयोंमें उत्कृष्ठ और धार्मिक संतान उत्पन्न होगी, इसमें कुछ - इस समय हमारी दशा वैसी ही है, जैसी कि एक मदिरा पीनेवाले मनुष्यकी। मदिराका भी संदेह नहीं। वैद्य " से उद्धृत । पीनेवाला मदिराको पीकर उसके नशे में मस्त झे जाता है, तब उसे अपने मापेकी कुछ सुध

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