Book Title: Dhyan ka Vigyan Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 6
________________ भूमिका ध्यान व्यक्ति की मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक मुक्ति का राजमार्ग है । ध्यान के महत्त्व को आज पूरे विश्व ने स्वीकार किया है । अति विकसित कहे जाने वाले देश और भोगवाद की चरम परिणति में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को असीम शान्ति और परम सुख ध्यान में ही प्राप्त हो रहा है। स्पष्ट है कि इस भारतीय विद्या की चमक सम्पूर्ण मानव-जीवन में परिलक्षित हो रही है। दरअसल, ज्यो-ज्यों भोगवाद की ओर मानव उन्मुख होता है, ध्यान उसके लिए अपरिहार्य हो जाता है । आज के तनाव भरे जीवन से मुक्ति अगर मनुष्य को ध्यान से मिलती है तो इसका तात्पर्य यह नहीं है कि ध्यान केवल दुःखों से छुटकारा पाने की विधि है। ध्यान तो इससे आगे का रास्ता है - परिपूर्ण चेतना का, दिव्य शक्तियों की जागृति का। जहाँ मानव की मेधा मुस्कुरा उठती है, आत्मा शून्य की उस परम अवस्था को प्राप्त करती है जो चेतना का सर्वोच्च स्तर है । यानी एक सम्पूर्ण मानव का अभ्युदय । आज इसी मानव की तो जरूरत है सृष्टि को । ध्यान से मनुष्य का चित्त स्थिर होता है, जो मनुष्य को सुपथ पर लाता है। ध्यान मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन लाता है जो व्यक्ति को एकाग्रचित होकर संयमी और शान्त बनाता है। ध्यान के सम्बन्ध में हमारे मनीषियों ने बहुत कुछ कहा है। सबकी अपनी-अपनी अवधारणाएँ, मान्यताएँ और रीतियाँ हैं। कोई छोटी-बड़ी नहीं है । क्योंकि सभी हमें जहाँ पहुँचाती हैं, वह स्थान एक ही है । परन्तु संबुद्ध संत श्री चन्द्रप्रभु ने अपनी इस पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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